अररिया लोकसभा सीट: सरफराज़ आलम दे रहे हैं जबरदस्त टक्कर!

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पिछले 52 वर्षों में अररिया आरक्षित सीट से सामान्य सीट बन गया, लेकिन इसका विकास रेणु की परिकल्पना के अनुरूप नहीं हो पाया. इस बार लोकसभा चुनाव में जंग मुख्यत: ‘लालटेन’ और ‘कमल’ के बीच है.

अररिया में 1967 से लोकसभा चुनाव हो रहा है. 1990 में यह जिला बना. कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा और राजद समेत सभी राष्ट्रीय-क्षेत्रीय दलों ने अलग-अलग समय पर इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है.

इस लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह और राजद प्रत्याशी सरफराज आलम के बीच आमने-सामने की लड़ाई है. 2014 में तस्लीमुद्दीन इस सीट से सांसद चुने गये थे. इसके बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र सरफराज आलम जीते.

अररिया में पिछड़ेपन के सवालों के बीच लोकसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी रहते हैं. किसानों के लिये पैदावार की अच्छी कीमत मुद्दा है तो युवा विकास को मुद्दा बता रहे हैं. कई लोग स्थानीय मुद्दे को तरजीह दे रहे हैं.

हर वर्ग की अपनी आशा-आकांक्षा के बीच यहां के लोग तेज गति से विकास चाहते हैं. अन्य जिलों की तुलना में अररिया विकास की दौड़ में बहुत पीछे है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी सुविधाओं की कमी है.

यहां के सांसद सरफराज इस क्षेत्र के पिछड़ेपन के लिए केन्द्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार बताते हैं. उनका दावा है कि उनके पिता ने अररिया ही नहीं पूरे सीमांचल के विकास के लिए पहल की और अब वह पिता के काम को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अररिया के विकास के लिए उन्होंने केंद्र सरकार के सभी मंत्रियों से बात की और यहां के विकास पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया.

अररिया लोकसभा सीट पर हुए 14 आम चुनावों में तीन बार भाजपा ने जीत दर्ज की है. भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह का कहना है कि अररिया में पंचायत स्तर तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने और अररिया को स्वर्णिम पहचान प्रदान कराना उनका लक्ष्य है. उन्होंने कहा कि सीमांचल के विकास के लिये नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना जरूरी है और अररिया की जनता इसमें योगदान देने का मन बना चुकी है.

साभार- प्रभात खबर