आर्थिक आरक्षण: सरासरा फर्जीवाड़ा?

   

सवर्णों के लिए आर्थिक आरक्षण के विधेयक को संसद के दोनों सदनों ने प्रचंड बहुमत से पारित कर दिया है। आरक्षण का आधार यदि आर्थिक है तो उसे मेरा पूरा समर्थन है। वह भी सरकारी नौकरियों में नहीं, सिर्फ शिक्षा-संस्थाओं में ! इस दृष्टि से यह शुरुआत अच्छी है लेकिन इस विधेयक को संसद ने जिस हड़बड़ी और जिस बहुमत या लगभग जिस सर्वसम्मति से पारित किया है, उससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है। इसने संसद की इज्जत को पैंदे में बिठा दिया है।

मुझे ऐसा लगा कि संसद के ये लगभग 800 सदस्य अपना दिमाग क्या अपने घर रखकर संसद में चले आते हैं ? लगभग सभी विरोधी वक्ताओं ने इस विधेयक को मोदी की चुनावी चालबाजी बताया, इसे हवाई झांसा कहा, इसे असंवैधानिक कहा लेकिन उनमें इतनी हिम्मत क्यों नहीं है कि वे इसका विरोध करते ? उन्होंने इसके विरुद्ध मतदान क्यों नहीं किया ? वे मोदी से डर गए । उन्हें डर लगा कि मोदी देश के सवर्ण मतदाताओं में उनके खिलाफ प्रचार करेगा।

एक मंदबुद्धि नेता के सामने ये सभी विपक्षी नेता मतिहीन साबित हुए। किसी ने भी खड़े होकर यह क्यों नहीं पूछा कि 65 हजार रु. महिना कमानेवाला व्यक्ति गरीब कैसे हो गया ? यह आंकड़ा प्रधानमंत्रीजी आपको किसने पकड़ा दिया ? आपने अपनी अक्ल का इस्तेमाल क्यों नहीं किया ? यदि 8 लाख रु. सालाना कमानेवाले को आपने गरीब की श्रेणी में डाल दिया तो आपने इस ‘गरीब’ का भयंकर अपमान किया है। कोई मेरे-जैसे आदमी को गरीब कह दे तो क्या मुझे अच्छा लगेगा ?

जो सरकार देश के करोड़ों मध्यवर्गीय, सुशिक्षित और सुविधासंपन्न लोगों को गरीब की श्रेणी में डाल रही है, वे उसे क्यों बख्शेंगे ? इसके अलावा वह 8 लाख तक सलाना आमदनीवालों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर क्या वह इस जरा-से आरक्षण को देश के सवा अरब लोगों के बीच चूरा-चूरा करके बांट नहीं रही है ? क्या यह गरीबों के साथ सरासर धोखाधड़ी नहीं है ? यह ऐसा है, जैसे 10 अंगूर हों और उन पर आप 100 लंगूरों को झपटा दें। आप सिर्फ 10 प्रतिशत आरक्षण देश के 125 करोड़ लोगों के बीच बांट रहे हैं।

इससे बड़ा ढोंग, फरेब और फर्जीवाड़ा क्या हो सकता है ? नोटबंदी और जीएसटी पहले ही रोजगारों को खाए जा रही है और आप नए रोजगार बांटने चले हैं। हवा में लट्ठ चला रहे हैं। घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। और फिर यह संशोधन अदालत में पटकनी खाने के लिए भी पूरी तरह से तैयार है। 2019 के चुनाव तक यह आर्थिक आरक्षण कोरा जबानी—जमाखर्च ही बना रहेगा।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक