आलोक वर्मा के खिलाफ नहीं हैं भ्रष्टाचार के ठोस सबूत- जस्टिस पटनायक

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सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस एके पटनायक की देखरेख में सीवीसी ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की थी। उन्होंने रविवार को कहा कि वह चयन समिति की गति को देखकर हैरान हैं जिसने सीवीसी की भारी-भरकम रिपोर्ट को देखकर 24 घंटे से भी कम समय में वर्मा को पद से हटाने का फैसला लिया।

टाइम्स ऑफ इंडिया से हुई बातचीत में जस्टिस पटनायक ने कहा, ‘एनेक्जर के साथ सीवीसी की रिपोर्ट 1,000 पन्नों से ज्यादा की है। मैं इस बात से हैरान हूं कि चयन समिति के सदस्यों ने इतने कम समय में सारे पन्ने कैसे पढ़ लिए, सबूतों को सही माना और यह फैसला लिया कि वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा देना चाहिए। यह सही होता अगर चयन समिति सबूतों को सत्य मानने के लिए थोड़ा सा और समय लेती और फिर फैसला लेती।’

चयन समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एके सीकरी शामिल थे। जहां पीएम मोदी और जस्टिस सीकरी का नजरिया इस बात को लेकर साफ था कि वर्मा को उनके पद से हटा देना चाहिए वहीं खड़गे इससे असहमत थे।

जब यह पूछा गया कि क्या सीवीसी ने वर्मा पर लगे विभिन्न आरोपों की जांच के दौरान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किया तो जस्टिस सीकरी ने कहा, वर्मा के खिलाफ हुई सीवीसी जांच के दौरान न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत का पूरी तरह से पालन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने मुझे देखरेख की जिम्मेदारी दी थी, यह सुनिश्चित करना मेरा काम था कि न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत का पालन हो और मैंने इसका निष्ठापूर्वक पालन किया।

जस्टिस पटनायक से जब पूछा गया कि क्या वर्मा को रॉ डील मिली। इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। उन्हें दो करोड़ की रिश्वत मिलने को लेकर कोई सबूत नहीं है। सीवीसी ने मेरी देखरेख में जो सबूत रिकॉर्ड किए थे वह भ्रष्टाचार के आरोपों को सिद्ध करने के लिए काफी नहीं है।’