इस्लाम सहित दुनिया का कोई मजहब कत्ल, हिंसा और नफरत की तालीम नहीं देता- अरशद मदनी

   

जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने कहा कि नफरत और धार्मिक हिंसा को खत्म करने के लिए अब हमें मैदान में आना होगा। केवल कांफ्रेंसों के आयोजन और भाषण देने भर से इसका खात्मा नहीं हो सकता।

शुक्रवार को आस्ट्रिया वियना में हुई अंतरराष्ट्रीय सर्वधर्म कांफ्रेंस में मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने घरों से निकलकर अमल के मैदान आ जाएं और मजहब की सच्ची शिक्षा से लोगों को आगाह कराके यह बताएं कि दुनिया का कोई मजहब कत्ल, हिंसा और नफरत की तालीम नहीं देता। कोई मजहब अपने मानने वाले से यह नहीं कहता कि वो दूसरे मजहब को मानने वालों की गर्दन उड़ा दें, या उनसे नफरत करें।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, मौलाना मदनी ने कहा कि इस समय दुनिया बहुत नाजुक दौर से गुजर रही है। कहीं मजहब का झगड़ा है कहीं जुबान का, कहीं रंग और नस्ल का, कहीं राष्ट्रीयता का। कहीं अल्पसंख्यकों से उनके अधिकार छीने जा रहे हैं और इसके लिए बेझिझक नफरत, हिंसा और अतिवाद का सहारा लिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक हिंसा में हैरजअंगेज इजाफा हुआ है और इसका खतरनाक पहलू यह है कि कुछ मामलों में सरकारें भी धार्मिक हिंसा को हवा देने में व्यस्त हैं। इसके नतीजें में पूरी दुनिया में बेसहारा और मजलूम लोगों पर जुल्म और हिंसा में इजाफा हुआ है।

मौलाना मदनी ने कहा कि हमारा एक हाल में बैठकर धार्मिक शिक्षा को पेश कर देना भाषण करना और यह कह देना ही काफी नहीं है कि दुनिया में बसने वाले तमाम इंसान एक मां-बाप की औलाद हैं। इसलिए सबको आपस में मिलकर रहना चाहिए।

बल्कि दुनिया में तेजी से फैल रही नफरत और धार्मिक हिंसा खत्म करने के लिए अब हमें सभाओं, सेमिनारों और भाषणों के दायरे से बाहर निकल कर जनता के बीच जाकर काम करना होगा और उनके सामने मजहब की सच्ची तस्वीर पेश करनी होगी।

मजहब के नाम पर किसी भी प्रकार की हिंसा स्वीकार नहीं की जा सकती। साथ ही मदनी ने यह भी कहा कि जो लोग कत्ल, घृणा और हिंसा फैलाने के लिए मजहब का इस्तेमाल करते हैं वो अपने मजहब के सच्चे मानने वाले हरगिज नहीं हो सकते।