इस मुस्लिम देश की तानाशाही सत्ता को सिर्फ़ एक महिला ने उखाड़ फेंक दिया!

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अला सालाह अफ्रीकी देश सू़डान में विरोध प्रदर्शनों का प्रतीक बन गई, जहां पिछले दिनों दशकों से जमी एक सत्ता उखड़ गई. क्या महिलाएं अफ्रीका में ‘अरब वसंत’ की तर्ज पर बदलाव की ध्वज वाहक होंगी.

सूडान में प्रदर्शनों का सिलसिला पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ. राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए. अप्रैल में उनके सत्ता से हटने के बाद अब सारा ध्यान सूडान में एक असैन्य सरकार के गठन पर है.

सूडान के प्रदर्शनकारियों में दो तिहाई महिलाएं थीं. सूडानी प्रोफेशनल एसोसिएशन की सारा अब्देलजलील का कहना है कि महिलाओं की भागीदारी के बिना ऐसी क्रांति नहीं होती जो आज हमारे सामने है. वह कहती हैं, “महिलाओं ने जानें दीं.

वे प्रदर्शनों के केंद्र में थीं. उन्हें हिरासत में लिया गया, गिरफ्तार किया गया और अब तक मिली कामयाबी में उनका बहुत योगदान है. लेकिन उन्होंने पीड़ा भी बहुत झेली है और मुझे हमेशा इस बात पर गर्व होता है कि हमें जो दमन झेलना पड़ा है उसके बावजूद हमारा प्रतिरोध कहीं ज्यादा बड़ा है.”

पूर्वी अफ्रीका में होने वाले प्रदर्शनों पर नजर रखने वाली सोमाली राजनेता फादुमो दायिब कहती हैं कि महिलाओं ने प्रदर्शन को एक खास चरित्र दिया है. उनका कहना है, “उन्होंने इसे चिंगारी दी.

महिलाएं इसे सड़कों तक ले गईं. उन्होंने कहा कि अब बस बहुत हो चुका. इसलिए वही इसमें प्रेरक थीं. लेकिन वे इसे बनाए रखने में भी कामयाब रहीं और वह भी शांतिपूर्ण तरीके से.”

सूडान में पिछले 30 साल के दौरान सूडानी महिलाओं के अधिकारों का बहुत अतिक्रमण हुआ है और इसकी बड़ी वजह रही इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या. इससे महिलाओं में राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी का हक मांगने और महिला खतना और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने की इच्छा ने जन्म लिया.

अब्देलजलील कहती हैं कि सूडान में महिला प्रदर्शनों की एक परंपरा रही है. 1964 और 1985 में हुए प्रदर्शनों में भी महिलाएं पहली कतार में थीं. उस समय भी सत्ता में बैठे तानाशाहों को अपनी गद्दियां गंवानी पड़ी थीं.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी