कश्मीर में नवजवान पढ़े लिखे होने के बावजूद भी बंदूक उठा रहे हैं, क्यों?

   

सन् 2010 के यू.पी.एस.सी. टापर, जम्मू-कश्मीर के आई.ए.एस. शाह फैसल ने इस्तीफा दे दिया। आजकल वह मीडिया में छाए हुए हैं। उनका कहना है कि उनका इस्तीफा केन्द्र सरकार के लिए चुनौती है।

इस्तीफा देने का कारण उन्होंने बताया कि वह कश्मीरी लोगों की आए दिन होने वाली हत्याओं से परेशान हैं। युवकों को पढऩे-लिखने के बाद बंदूक उठानी पड़ रही है। वह इनके लिए कुछ करना चाहते हैं।

बताते चलें कि शाह फैसल के पिता को आतंकवादियों ने मार दिया था। अपने बयानों में वह कश्मीरी पंडितों की वापसी की बात तो करते हैं मगर आतंकवादी बन जाने वाले युवकों के प्रति सहानुभूति भी रखते नजर आते हैं।

हालांकि वह यह भी कहते हैं कि अगर कोई सैनिक भी मारा जाता है तो उन्हें अफसोस होता है। उन्होंने यह भी कहा कि फुलब्राइट स्कॉलरशिप पर जब वह हार्वर्ड, अमरीका में पढऩे गए तब उन्हें कश्मीर के लोगों के दुखों का ज्यादा एहसास हुआ।

इससे यह भी पता चलता है कि कश्मीर के बारे में अमरीकन यूनिवर्सिटीज की राय भारत सरकार से कितनी अलग है। राग हम बेशक अपनी मित्रता का गाते रहें।

सच तो यह है कि कश्मीर में अब किसी राजनीतिक दल में यह हिम्मत नहीं कि वह आतंकवादियों का विरोध कर सके। शाह फैसल सपना देख रहे हैं तो जरूर देखें।

याद करने की बात है कि महबूबा मुफ्ती की बहन रूबिया सईद को आतंकवादी अपहरण करके ले गए थे और उन्हें वापस करने के बदले में भारत सरकार को कई आतंकवादी छोडऩे पड़े थे, जिनमें पाकिस्तान का खूंखार आतंकवादी हाफिज सईद भी शामिल था, वही हाफिज जो आज तक भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

उस समय रूबिया और महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद केन्द्र सरकार के गृहमंत्री थे लेकिन महबूबा को भी आतंकवादियों से अक्सर सहानुभूति रहती है।

साभार- ‘अमर उजाला’