क्या सबरीमला बन जाएगा दक्षिण का अयोध्या?

   

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की कुंभ मेला क्षेत्र में हुई धर्म संसद के पहले दिन गुरुवार को सबरीमला आंदोलन को पूरे देश में फैलाने और हिंदू समाज को तोड़ने के खिलाफ आंदोलन के प्रस्तावों पर मुहर लग गई। धर्म संसद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि सबरीमला समाज का संघर्ष है। यह सिर्फ दक्षिण का संघर्ष नहीं है।

केरल की वामपंथी सरकार कोर्ट के आदेशों से परे जा रही है। इस मामले को देश में लिंगभेद के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि यह आस्था का मामला है। सरकार कुछ गैर-श्रद्धालुओं को छलपूर्वक मंदिर के अंदर ले गई। अयप्पा के भक्तों का दमन किया जा रहा है। हिंदू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नई-नई योजनाएं चल रही हैं।

विद्वेष फैलाने का आरोप

भागवत ने कहा कि आज हिंदू समाज को बांटने के कई प्रयास हो रहे हैं। जाति के आधार पर विद्वेष फैलाया जा रहा है। भीमा कोरेगांव इसका प्रमुख उदाहरण है। इस समस्या के समाधान के लिए सामाजिक समरसता, जातिगत सद्भाव और कुटुंब प्रबोधन के कदम उठाने होंगे। धर्म जागरण के माध्यम से जो हिंदू हमसे बिछड़ गए हैं, उन्हें वापस लाना होगा।

कार्यक्रम में मौजूद स्वामी परमानंद ने सबरीमला संघर्ष को राम मंदिर आंदोलन के बराबर बताया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हिंदू परंपराओं के प्रति अविश्वास पैदा किया जा रहा है। इस तरह के विवाद जानबूझकर खड़े किए जाते हैं। इस मौके पर योग गुरु स्वामी रामदेव ने देश में समान नागरिक संहिता और समान जनसंख्या का कानून लाने की वकालत की। धर्म संसद में 200 से अधिक संत उपस्थित थे।

(साभार: नवभारत टाइम्स)