सरकार आधी आबादी को कलम पकड़ाने को प्रयासरत है, मगर गरीबी किताब की बजाए रिक्शे का हैंडल थामने को मजबूर कर रही है। सासाराम शहर के तकिया मोहल्ले की 14 वर्षीय नंदिनी इन दिनों रिक्शा चलाकर घर के लिए रोटी का जुगाड़ कर रही है। कोरोना काल इसमें भी अवरोधक है। उसके हाथ बमुश्किल पचास-साठ रुपये आते हैं। रिक्शेके पैडल तक पांव भी ठीक से नहीं पहुंचते, लेकिन गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया है। मोहल्ले में सरकारी स्कूल होने के बावजूद उससे नहीं जुड़ पाई है। न ही उसके घर की तरफ किसी जनप्रतिनिधि या प्रशासन की आज तक नजर पड़ी। नंदिनी सिस्टम के लिए बड़ा सवाल बन गई है।
पिता को पड़ी मार तो थामा हैंडिल
बात होने पर कहती है कि पिता संतोष कुमार रिक्शा चलाते थे, लॉकडाउन में पुलिस की मार पड़ी तो वे घर बैठ गए और बाद में बाहर मजदूरी करने चले गए। वह वहां काम न मिलने से अपना पेट ही नहीं भर पा रहे, घर को पैसे क्या भेजेंगे? अब वह उसी रिक्शे को उसने थाम लिया है। रिक्शा से ही परिवार का भोजन चलता है। घर में मां व दो छोटे भाइयों की जवाबदेही उसपर है। वह कुछ देर के लिए ही रिक्शा लेकर निकलती है। दो-चार यात्री मिल जाते हैं तो 50-60 रुपये आ जाता है। बताती है कि वह आज तक स्कूल नहीं गई। पहले कचरे हटाती-बिनती थी । घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है। टोले के लड़के भी स्कूल नहीं जाते है।
डीईओ बोले-स्कूल जाएगी नंदिनी
इस बाबत डीईओ संजीव कुमार से बात हुई तो उन्होंने कहा कि नंदिनी के रिक्शा चलाने जानकारी नहीं थी। आज पता चला है। अगर उसे अब तक स्कूल से नहीं जोड़ा गया है तो यह गंभीर मामला है। हाल में भी स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों का सर्वे कराया गया है, उसमें भी बच्ची का नाम नहीं है। पूरे मामले की जांच कराई जाएगी और उसे स्कूल से जोडऩे का काम किया जाएगा। कम उम्र में जोखिम भरा काम करना किसी भी बच्चे के लिए खतरनाक है। नंदिनी के परिवार को जो भी आवश्यक सुविधाएं होगी, उसे पूरा कराने के लिए जिला प्रशासन से अनुरोध किया जाएगा।