गोगोई: यह जांच है या मजाक है ?

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सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई का मामला अब और उलझता जा रहा है। एक अन्य जज डी.वाय. चंद्रचूड़ ने जांच कमेटी के अध्यक्ष एस.ए. बोबदे को पत्र लिखकर मांग की है कि यौन-उत्पीड़न के इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के सभी जजों की कमेटी को सुनना चाहिए और उस कमेटी में इसी न्यायालय की तीन सेवा-निवृत्त महिला जजों को भी जोड़ा जाना चाहिए।

चंद्रचूड़ ने यह सुझाव इसलिए दिया है कि उस उत्पीड़ित महिला ने वर्तमान जांच कमेटी के व्यवहार से असंतोष प्रकट किया है और उसका बहिष्कार कर दिया है। उस कमेटी से एक जज ने पहले ही किनारा कर लिया है, क्योंकि उस महिला ने उस जज की गोगोई के साथ नजदीकी पर एतराज किया था।

अब कमेटी का कहना है कि यदि वह पीड़ित महिला सहयोग नहीं करेगी तो यह कमेटी एकतरफा सुनवाई के आधार पर अपना फैसला देने के लिए मजबूर हो जाएगी। मैं इस कमेटी से पूछता हूं कि यदि वह महिला अपनी सुनवाई के वक्त एक महिला वकील को अपने साथ रखना चाहती है तो आपको एतराज क्यों है ? जांच की सारी कार्रवाई को रिकार्ड करने की मांग वह महिला कर रही है तो इसमें डर की बात क्या है ?

यह क्यों कहा जा रहा है कि जांच की रपट को गोपनीय रखा जाएगा और सिर्फ वह प्रधान न्यायाधीश को सौंपी जाएगी, इससे बड़ा मजाक क्या होगा ? यदि यही करना है तो जांच की ही क्यों जा रही है ? सच्चाई तो यह है कि जांच के दौरान गोगोई को छुट्टी पर चले जाना चाहिए था या आरोप लगानेवाली महिला के खिलाफ मानहानि के रपट लिखवाकर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करवानी चाहिए थी।

लेकिन अब जो कुछ हो रहा है, यह जांच नहीं, जांच की नौटंकी है। इसके कारण देश की सबसे ऊंची अदालत की इज्जत पैंदे में बैठी जा रही है। गोगोई ने उस महिला के साथ जो उत्पीड़न किया या नहीं किया, उसके कारण जितनी बदनामी हो गई (जो कि व्यक्तिगत है), उससे ज्यादा बदनामी (संस्थागत) अब सर्वोच्च न्यायालय की होगी।

यह मामला ऐसा है, जिसमें गवाह कोई नहीं है, प्रमाण कोई नहीं है। सिर्फ वादी है और प्रतिवादी है। दोनों अतिवादी हैं। इसमें जांच कमेटी क्या करेगी ? इसके अलावा असली जांच दूसरेवाली है, जिसमें यह मालूम किया जाना है कि कौनसे निहित स्वार्थी लोगों ने इस मामले में गोगोई को जबरदस्ती फंसाने की कोशिश की है। यह जांच पहले होती तो कहीं बेहतर होता।

(यह लेख लिखे जाने के बाद खबर आई कि सर्वोच्च न्यायालय की जांच कमेटी ने सारे मामले को फर्जी कहकर खारिज कर दिया है। हमें जिस बात का अंदेशा था, वही हुआ)

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक