देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष न जाने किस दुविधा में हें कि वह अपने घोषित निर्णय से टस से मस नहीं हो रहे।
लोक सभा चुनाव में हार के बाद पद से त्याग पत्र देने के बाद उन्हें मनाने के सारे प्रयास नाकामयाब रहे हैं।
शायद वे इस तथ्य से नावाकिफ हैं कि परिवारवादी पार्टी में ऐसे मामलों में मान मनव्वल के बाद इस्तीफे वापस लिये जाते रहे हैं क्योंकि वफादारों के लिये नये मुखिया के सामने वही जलवा और कद बरकरार रखना आसान नहीं होता और ऐसी पार्टी में जो नया अध्यक्ष बनाया जाता है वह परिवार के इशारों पर नाचता है।
अब 5 सीएम द्वारा इस्तीफे दिये जाने, माताजी और बहन के दबाव और वर्करों के बेमियादी भूख हड़ताल के इरादे के बाद बॉस को मान जाना चाहिये।