जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने मंगलवार को कहा कि गाइडलाइंस या नियम बनाना सरकार का काम है न कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का। पीठ ने कहा कि गाइडलाइंस बनाने में लोगों की निजता के साथ-साथ देश की संप्रभुता का ध्यान रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में पॉलिसी बनाने के बाद ही अदालत उस पर गौर कर सकती है कि वह कानून और संविधान के मुताबिक है या नहीं है।
पीठ ने केंद्र सरकार को इस संबंध में तीन हफ्ते में हलफनामा दाखिल कर बताने के कहा कि फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म से आपत्तिजनक पोस्ट के बारे में जानकारी कैसे हासिल की जा सकती है। पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 22 अक्तूबर मुकर्रर की है।
सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म को कानून के प्रति जवाबदेह होना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा होता है फर्जी खबरों का प्रचार-प्रसार किया जाता है, जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या आती है।
वहीं फेसबुक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और व्हाट्सएप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मामला मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले का निपटारा करना चाहिए। वहीं अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हाईकोर्ट इस मसले पर लंबी सुनवाई कर चुका है, लिहाजा हाईकोर्ट को सुनवाई पूरी करने की इजाजत दी जानी चाहिए।
पीठ ने कहा कि सीआरपीसी और आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत पुलिस को सोशल मीडिया से जानकारी हासिल करने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि कोई यह नहीं कह सकता कि ऐसा करने के लिए हमारे पास तकनीक नहीं है। आखिर सरकार को क्यों नहीं मध्यवर्ती सोशल मीडिया प्लेटफार्म से यह पूछना चाहिए कि आपत्तिजनक पोस्ट का स्रोत क्या है।
‘नियम का मसौदा तैयार, लोगों से लिए जा रहे सुझाव’
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