कश्मीर में हिंसा

   

कश्मीर के हाल देखने के लिए इधर से 23 यूरोपीय सांसद श्रीनगर पहुंचे और उधर कुलगाम में आतंकवादियों ने पांच मजदूरों की हत्या कर दी। इस खबर के आगे मोदी की सउदी यात्रा और बगदादी की हत्या की खबर फीकी पड़ गई। यूरोपीय सांसदों का कश्मीर-भ्रमण भी अखबारों के पिछले पृष्ठों पर सरक गया। जो लोग मारे गए, वे कौन थे ? वे सब बांग्लादेशी और मुसलमान थे।

मुर्शिदाबाद के निवासी इन मजदूरों का राजनीति से क्या लेना-देना लेकिन आतंकवादियों ने इन्हें मार गिराया। यह कौनसी बहादुरी है ? यह तो शुद्ध कायरता है। निहत्थे मजदूरों को मारनेवालों को कौनसी जगह मिलेगी ? जन्नत या दोजख (नरक)? इन हत्यारों को आप क्या कहेंगे ? क्या वे जिहादी हैं ? उन्हें पता नहीं कि उनकी यह हरकत, यह बेवजह तशद्दुद (अकारण हिंसा) किसी भी काफिराना हरकत से कम नहीं है। ये दहशतगर्द लोग कश्मीरी आवाम के घोर शत्रु हैं।

कश्मीर के हालात धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे लेकिन अब सरकार को भी सोचना पड़ेगा कि सारे प्रतिबंध इतनी जल्दी हटा लेना ठीक है या नहीं ? इन आतंकवादियों ने भारत सरकार के हाथ में नई बंदूक पकड़ा दी है। ये लोग पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि बिगाड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं। ये समझ रहे हैं कि ये हत्याएं करके वे यूरोपीय सांसदों को भारत के दावों के बारे में एक निषेधात्मक संदेश दे सकेंगे लेकिन कश्मीर में उनकी उपस्थिति में ये हिंसा उन्हें (और पाकिस्तान को भी) बदनाम किए बिना नहीं रहेगी।

यूरोपीय सांसदों से उम्मीद थी कि वे कश्मीर के हालात के बारे में अपनी निष्पक्ष और निडर राय देंगे लेकिन अब जरा सोचिए कि इन हत्याओं का उनके मन पर क्या असर पड़ेगा। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि यदि कश्मीरी लोग शांति और सदभावना का रास्ता पकड़ेंगे तो भारत सरकार ही नहीं भारत के करोड़ों लोग उनके अधिकारों, सुविधाओं और सम्मान के लिए जी-जान लगा देंगे। वरना कश्मीर का यह आपात्काल बढ़ता ही चला जाएगा और उसका मामला उलझता ही चला जाएगा।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक