जमीयत उलमा ने पतंजलि उत्पादों को हलाल ’प्रमाणपत्र जारी किया?

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फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सऐप पर कई मैसेज चल रहे हैं, हलाल फ़ूड को लेकर. इस तरह की बातें कही जा रही हैं कि खाने-पीने की आम चीज़ों को भी हलाल सर्टिफिकेट लगाकर बेचा जा रहा है, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं है. हो सकता है आपके पास भी ऐसा मैसेज आया हो या आपने ऐसी पोस्ट देखी हो.

आखिर ये पूरा बवाल है क्या?

कहानी के पीछे की कहानी

कुछ तस्वीरें वायरल हुईं, जिनमें दिखाया गया था कि लोग ‘हिंदू’ फल दुकान के पोस्टर लगाए बैठे हैं. झारखंड पुलिस ने इस पर एक्शन लिया. इसके बाद पुलिस ने बैनर हटवाए. कुछ दुकानदारों ने पुलिस की कार्रवाई देख खुद ही बैनर हटा लिए. पुलिस कार्रवाई के बाद ट्विटर पर #Hinduphobia_In_Jharkhand टॉप ट्रेंड में रहा. इस ट्रेंड के जरिए लोगों ने पुलिस और सरकार को घेरा. साथ ही खाने-पीने की दुकानों की तस्वीरें शेयर कीं, जिनमें हिंदू-मुसलमान के आधार पर दुकानों के नाम लिखे दिखाई दिए.

इसी के बाद तस्वीरें चलाई जाने लगीं, जिनमें सत्तू से लेकर नमक तक के पैकेट पर ‘हलाल’ लिखा हुआ था.

क्या होता है ‘हलाल’ और ‘हराम’?

आम तौर पर ‘हलाल’ शब्द मांस वगैरह के सन्दर्भ में इस्तेमाल होता हुआ सुना होगा आपने इससे पहले. लेकिन इसका मतलब सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है. इस्लामिक काउंसिल के अनुसार,

‘हलाल’ एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है कानून सम्मत या जिसकी इजाज़त शरिया (इस्लामिक कानून) में दी गई हो. ये शब्द खाने-पीने की चीज़ों, मीट प्रोडक्ट्स, कॉस्मेटिक्स, दवाइयां, खाने में पड़ने वाली चीज़ों- सब पर लागू होता है. ‘हराम’ उसका ठीक उलट होता है. यानी जो चीज़ इस्लाम में वर्जित है. लिपस्टिक से लेकर दवाइयां तक- सब कुछ ‘हलाल’ और ‘हराम’ की श्रेणी में बांटे जा सकते हैं.

उदाहरण:

किस तरह का मांस ‘हलाल’ है?

#ऐसे जानवर का मांस, जिसे अल्लाह का नाम लेकर ज़िबह किया गया हो. तेज़ धार वाली छुरी से.

#जानवर ने दूसरे जानवरों को मरते हुए न देखा हो.

#जानवर को ज़िबह करने से पहले अच्छी तरह से देखभाल कर रखा गया हो.

#जानवर के सामने छुरी तेज़ न की गई हो.

किस तरह का मांस ‘हराम’ है?

#ऐसा जानवर, जिसे अल्लाह का नाम लेकर ज़िबह न किया गया हो.

#एक झटके में मारा गया जानवर.

#ऊंचाई से गिर कर मरे जानवर का मांस.

#सूअर, शेर, कुत्ते, भेड़िए का मांस.

गैर-मांस वाली चीज़ें कैसे हलाल या हराम हैं?

उदाहरण के तौर पर कई लिपस्टिक्स में ऐसा रंग मिलाया जाता है, जो कीड़ों को मसल कर मिलता है. ऐसी लिपस्टिक्स हराम मानी जाती हैं.

इसी तरह दवाइयां या स्किन केयर प्रोडक्ट्स, जिसमें सूअर के मांस या चर्बी का इस्तेमाल हुआ हो, उन्हें हराम माना जाता है.

कौन देता है ‘हलाल’ सर्टिफिकेट, और किन मामलों में ज़रूरी है ये?

‘दी लल्लनटॉप’ ने बात की वरिष्ठ पत्रकार जिया-उस-सलाम से. ये कुरआन के जानकार हैं. तलाक के मसले पर ‘टिल तलाक डू अस पार्ट‘ नाम से किताब भी लिखी है. इन्होंने हमें बताया,

वेजिटेरियन खाने को लेकर ‘हलाल’ या ‘हराम’ के सर्टिफिकेट की कोई ज़रूरत नहीं है देश में. ये नियम उन प्रोडक्ट्स पर लागू होता है, जिनमें जानवरों के मांस या उनके शरीर के किसी भी हिस्से का इस्तेमाल हुआ हो. भारत में ये सर्टिफिकेशन का काम मुख्य रूप से जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द जैसे संस्थान करते हैं. इनका अपना हलाल ट्रस्ट है, जो इन सभी नियमों का ध्यान रखते हुए सर्टिफिकेशन देता है.

हलाल इंडिया, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे प्राइवेट संस्थान भी ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देते हैं. इनको भारत सरकार की तरफ से रजिस्ट्रेशन मिला हुआ है. बाहर के देश जैसे सिंगापुर, मलेशिया भी इनके ‘हलाल सर्टिफिकेट’ को मान्यता देते हैं.

कैसे मिलता है ‘हलाल’ सर्टिफिकेट?

इसकी जानकारी के लिए हमने बात की सैयद मोहम्मद इमरान से. ये ‘हलाल इंडिया’ के ऑपरेशन्स हेड हैं. इन्होंने बताया,

कोई भी कंपनी जब हमें अप्रोच करती है, तो हम सबसे पहले ये देखते हैं कि उसके पास FSSAI का लाइसेंस है या नहीं. उसके बाद हम कंपनी की डीटेल्स अपनी ऑडिट टीम को बढ़ाते हैं. ये लोग जाकर इंस्पेक्ट करते हैं कि कंपनी जो कुछ भी बना रही है, उसमें किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल हो रहा है.

उन्होंने बताया  कि इसके बाद टीम वापस आकर रिपोर्ट जमा करती है. सब कुछ संतोषजनक होने के बाद ही सर्टिफिकेट दिया जाता है. इस पूरी सर्विस के लिए फीस ली जाती है. सर्टिफिकेशन का कोई चार्ज नहीं होता.

हलाल सर्टिफिकेशन के लिए जिन मानकों का ध्यान रखा जाता है वो ये हैं:

1.पोर्क कॉन्टेंट- यानी सूअर या सूअर के मांस से जुड़ी कोई भी चीज़ प्रोडक्शन में इस्तेमाल तो नहीं हुई. इसमें मांस से लेकर चर्बी, चमड़ी, फर- सब कुछ शामिल है. प्रोडक्शन ही नहिहं, उसकी पैकिंग में भी किसी ऐसे तत्त्व का इस्तेमाल तो नहीं हुआ जो पोर्क से जुड़ा हो.

2.अल्कोहल कॉन्टेंट- एक तय मात्रा में इंडस्ट्रियल अल्कोहल (इसे ethyl alcohol भी कहते हैं) को मान्यता दी गई है. लेकिन उसके अलावा किसी भी दूसरे तरह के अल्कोहल का इस्तेमाल वर्जित है. हालांकि दवाइयों के मामले में ऐसा कहा गया है कि अगर वो ‘लाइफ सेविंग ड्रग’ है, तो उसका इस्तेमाल करना हलाल है.

आम तौर पर ‘हलाल सर्टिफिकेट’ तीन तरह से दिया जा सकता है:

1. प्रोडक्ट्स को. इसमें कोई भी कंपनी अपना एक प्रोडक्ट सर्टिफाई करवा सकती है. और वो प्रोडक्ट कहीं भी बेचा जा सकता है. नॉन-हलाल सर्टिफाइड चीज़ों के साथ भी.

2. प्रोडक्शन करने वाली जगहों/फैक्ट्रियों को. इसका मतलब ये है कि इस फैक्ट्री में बनने वाली सभी चीज़ें हलाल होंगी. जैसे कोई बूचड़खाना है. अगर उसे हलाल सर्टिफिकेट मिलता है, इसका मतलब वहां काटने वाला सारा मांस हलाल तरीके से काटा जाता है.

3. रिटेल स्टोर/दुकानों को. रेस्टोरेंट या होटल भी इनमें आते हैं. यानी इनमें बना खाना, और यहां मिलने वाली सभी चीज़ें हलाल हैं.

भारत में बेचने के लिए हलाल लोगो क्यों?

इमरान ने बताया कि जिस तरह शाकाहारी लोग खाने के पैकेट्स पर ग्रीन डॉट देखकर मानते हैं कि खाना शाकाहारी है, उसी तरह इस्लाम को मानने वाले लोग हलाल प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करना प्रेफर करते हैं. उनके लिए ‘हलाल’ लोगो का मतलब है कि ये प्रोडक्ट बनाने में सारी गाइडलाइंस का ध्यान रखा गया है.

हलाल ‘बिजनेस’?

जैसा आपने ऊपर पढ़ा, इस तरह के मैसेज चलाए जा रहे हैं कि नमक या सत्तू जैसी चीज़ों को हलाल सर्टिफिकेट की क्या ज़रूरत है? दुनिया के इस्लामिक देश (कुवैत, मलेशिया, क़तर, लीबिया इत्यादि) और कई दूसरे देश, जहां मुस्लिम जनसंख्या काफी है, वहां व्यापार करने के लिए हलाल सर्टिफिकेट होना आवश्यक है. OIC यानी आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन के तहत आने वाले सभी 57 देश इसमें शामिल हैं.

यही वजह है कि पतंजलि, जो पूरी तरह शाकाहारी प्रोडक्ट्स बनाती है, उसे भी अपने प्रोडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेशन लेना पड़ा.

पतंजलि से एक ट्विटर यूजर ने सवाल पूछा था कि उनके लेटरहेड पर ‘हलाल सर्टिफाइड’ क्यों लिखा हुआ है. इस पर पतंजलि ने जवाब देते हुए कहा कि कुछ देशों में व्यापार करने के लिए इस सर्टिफिकेट का होना ज़रूरी है. (तस्वीर: ट्विटर)

हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक़, दुनियाभर में रह रहे 1.6 अरब मुस्लिम दुनिया की जनसंख्या का 23 फीसद हैं. यही नहीं, रॉयटर्स के मुताबिक़, पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों के बिजनेस में 12 फीसद हिस्सा हलाल फ़ूड का है. ऐसे में कंपनियों को ये लगता है कि  हलाल की बढ़ती हुई मांग को नज़रंदाज़ करना एक बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान होगा.

साभार- thelallantop.com