पूर्वोत्तर के मेघालय में न तो PM मोदी का जादू चला और न ही दस साल से यहां राज कर रही कांग्रेस के वादों पर लोगों ने भरोसा जताया। यह सही है कि हर बार की तरह अभकी भी कांग्रेस यहां सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है। लेकिन गारो, खासी व जयंतिया पहाड़ियों में बंटे इस पर्वतीय राज्य के लोगों ने अबकी भी विधानसभा चुनावों में दशकों पुरानी एक पंरपरा को कायम रखा है। वह है कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं देना।
राज्य के गठन के बाद वर्ष 1972 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में यहां आल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस को 32 सीटें मिली थीं। उन चुनावों में कांग्रेस को नौ सीटें मिली थीं। उसके बाद तो हर चुनाव में इतिहास खुद को दोहराता रहा है। यहां हर बार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती रही है। लेकिन उसे स्थानीय दलों या निर्दलीयों की सहायता से ही सरकार बनानी पड़ती है।
किसी अकेली पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की वजह से ही यह राज्य लंबे अरसे तक राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है। बीते दस साल से कांग्रेस की अगुवाई में सरकार चलने से यहां राजनीतिक स्थिरता का माहौल बना था। लेकिन चुनावी नतीजों ने एक बार फिर इस राज्य को अनिश्चितता की ओर धकेल दिया है।