अंकित के पिता बोले- ‘हमने माहौल को सांप्रदायिक होने से रोका इसलिए सजा मिल रही है’

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एक मुस्लिम परिवार ने जब यशपाल सक्सेना के महज 23 साल के बेटे अंकित सक्सेना को मौत के घाट उतारा था, तब माहौल को सांप्रदायिक होने से रोक कर वह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गए थे. हालांकि अब वह अकेले पड़ गए हैं और खुद को टूटा हुआ सा महसूस कर रहे हैं.

पिछले साल फरवरी महीने में यशपाल के एकलौते बेटे अंकित को उसकी गर्ल फ्रैंड के परिजनों ने बेरहमी से दिन दहाड़े मौत के घाट उतार दिया था. जिसके बाद इस हत्या को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा था, तब अंकित के पिता ने इस तरह के प्रयासों को नाकाम कर दिया था. तब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने परिवार को 5 लाख रुपए सहायता राशि देने का ऐलान किया था. हालांकि यशपाल के मुताबिक परिवार को अभी तक एक पैसा भी नहीं मिला है.

क्या दो समुदायों के बीच दरार डालने से मिल जाएगा मुआवजा

उन्होंने न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा, “हमें अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है. हमने बार-बार दिल्ली सरकार को याद दिलाया, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया.”

अपना दर्द बयां करते हुए यशपाल ने कहा, “हमारा एकलौता बेटा जा चुका है. मुझे हार्ट अटैक आया था. मेरी पत्नी के भी तीन ऑपरेशन हो चुके हैं. हमारे कई खर्च हैं. हमें थोड़ी-बहुत मदद अपने पड़ोसियों से मिल जाती है. दिल्ली के सीएम ने कहा था कि हमें 5 लाख रुपए मुआवजा दिया जाएगा. बाद में उन्होंने अतिरिक्त मदद की भी बात की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कुछ नहीं किया. हम टूट चुके हैं.”

यशपाल निराश होकर सवाल करते हुए कहते हैं, “क्या मुझे मुआवजा इसलिए नहीं दिया जा रहा है क्योंकि मैंने घटना को सांप्रदायिक नहीं होने दिया? मैं दो समुदायों के बीच प्रेम और सद्भाव कायम करना चाहता था. क्या मुझे इसके लिए दंडित किया जा रहा है?” 60 वर्षीय यशपाल ने सवाल किया, “क्या दोनों समुदायों के बीच दरार से जल्दी मुआवजा मिल जाएगा.”

पिछले साल फरवरी में हुई थी अंकित की हत्या

पिछले साल, अंकित की प्रेमिका की मां शहनाज, पिता अकबर अली, एक नाबालिक भाई और मोहम्मद सलीम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

दिल्ली पुलिस ने मामले में दायर चार्जशीट में यह भी कहा कि हत्या पूर्व नियोजित थी. आज, सक्सेना और उनकी पत्नी की सरकार और अधिकारिय सुनवाई नहीं कर रहे हैं और न्याय के लिए उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.