अगर रिपोर्ट पर गौर करें तो सऊदी अरब में इस्लाम को खत्म करना चाहते थे प्रिंस सलमान!

   

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के पूर्व अफ़सर रियाज़ और वाशिंग्टन में सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से अपनी दो लंबी मुलाक़ातों की कुछ बातें सार्वजनिक की हैं।

विल हर्ड नाम के पूर्व अफ़सर जो इस समय टेक्सास से रिपब्लिकन पार्टी के सेनेटर हैं उनका कहना है कि 15 महीने पहले रियाज़ में मुहम्मद बिन सलमान से उनकी पहली मुलाक़ात हुई उस समय वह डिप्टी क्राउन प्रिंस थे।

हर्ड ने वाशिंग्टन पोस्ट में छपे अपने एक लेख में लिखा है कि मैंने मुलाक़ात में मुहम्मद बिन सलमान से जो बातें सुनीं वह किसी भी अरब नेता से कभी नहीं सुनीं। बिन सलमान ने कहा कि इस्लामी चरमपंथ इस्लाम के भीतर की एक समस्या है जिसे मुसलमानों को चाहिए कि पश्चिमी लोकतंत्र की मदद से बदलें।

हर्ड के अनुसार बिन सलमान जब क्राउन प्रिंस बन गए तो उन्होंने वह सामाजिक सुधार शुरू किए जिनकी सऊदी अरब को बहुत अधिक ज़रूरत है।

उन्होंने महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति दी। देश में बंद पड़े सिनेमा घरों को फिर से खुलवाया। जब बिन सलमान से दूसरी मुलाक़ात वाशिंग्टन में हुई तो उन्होंने अपने इन सुधार कार्यों से सऊदी समाज और अर्थ व्यवस्था पर पड़ने वाले अच्छे असर की बात की।

बिन सलमान ने सुधार के लिए क़दम तो उठाए लेकिन उन्होंने यमन में युद्ध शुरू कर दिया जिससे मानव त्रासदी उत्पन्न हो गई क्योंकि इस युद्ध में बहुत दर्दनाक रूप से आम नागरिक निशाना बने, अस्पताल, स्कूल, जल भंडार और बाज़ार निशाना बने। 80 लाख लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए।

अब अगर सऊदी अरब अपने नीतियों में बुनियादी बदलाव लाता है तब तो ठीक है लेकिन अगर वह बड़े बदलाव करने में असफल रहता है तो अमरीका के लिए सऊदी अरब का समर्थन जारी रख पाना कठिन होगा। यदि बिन सलमान अपना रवैया नहीं बदलते हैं तो सऊदी नरेश सलमान के लिए ज़रूरी है कि वह अपना उत्तराधिकारी बदलने के बारे में विचार करें।

वरिष्ठ पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के बाद ज़रूरी हो गया है कि सऊदी सरकार अपनी नीतियों में बड़े और लक्ष्यपूर्ण बदलाव करे। सऊदी अधिकारियों से यह वचन लेना ज़रूरी हो गया है कि वह मानवाधिकारों का सम्मान करेंगे और इसके लिए सऊदी अधिकारियों से खुलकर बात करने की ज़रूरत है।

सऊदी अरब की जेलों में जितने भी कार्यकर्ता बंद हैं उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।जिस प्रकार की बातें हर्ड ने अपने लेख में लिखी हैं वह अमरीका के दूसरे अधिकारी भी कह चुके हैं।

अमरीकी अधिकारियों के बयानों को देखा जाए तो यह बात साफ़ नज़र आती है कि वह सऊदी अरब को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। वाशिंग्टन को यह डर भी है कि सऊदी अरब कहीं रूस और चीन को अमरीका के विकल्प के रूप में प्रयोग करना शुरू न कर दे। इसलिए सऊदी अरब के मामले में बहुत फूंक फूंक कर क़दम उठाना चाहते हें।

11 सितम्बर के हमलों में लिप्त 19 हमलावरों में से 15 सऊदी अरब के नागरिक थे जिनके सऊदी अधिकारियों और राजकुमारों से गहरे संबंध थे मगर इसके बावजूद अमरीका ने सऊदी अरब के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की।

अमरीका यह समझता था कि इस्लामी जगत और अरब जगत में सऊदी अरब की स्थिति मज़बूत है अतः यदि उसके ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाया गया तो अमरीका की विदेश नीति को नुक़सान पहुंच सकता है।

मगर इस समय इस्लामी जगत और अरब दुनिया में सऊदी अरब अपनी नीतियों की वजह से काफ़ी हद तक अलग थलग पड़ गया है तो कुछ अमरीकी गलियारे सऊदी अरब को दंडित करने और सबक़ सिखाने की कोशिश में हैं।

सऊदी अरब की समस्या यह है कि उसने पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमरीका को अपनी सबसे महत्वपूर्ण ताक़त समझा जिसके चलते अनेक आयामों से यह देश पश्चिम पर निर्भर होता गया और अब हालत यह है कि अमरीकी वर्चस्व से बाहर निकल पाना उसके लिए बहुत कठिन है।

साभार- ‘parstoday.com’