अदालतों में 3.53 करोड़ व सुप्रीम कोर्ट में 58,669 मामले लंबित, 8,521 न्यायाधीशों की ज़रूरत

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नई दिल्ली : भारतीय अदालतों में 3.53 करोड़ से अधिक मामले लंबित है, सर्वोच्च न्यायालय में ही 58,669 मामले लंबित हैं. इनमें से 40,409 मामले तो ऐसे हैं जो बीते 30 वर्षों से लंबित हैं. नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि पांच साल के भीतर लंबित मामलों को निपटाने के लिए लगभग 8,521 न्यायाधीशों की ज़रूरत है. लेकिन उच्च न्यायालय और निचली अदालतों में 5,535 न्यायाधीशों की कमी है. सर्वोच्च न्यायालय में आज की तारीख़ में न्यायाधीशों की संख्या 31 है. लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय को आठ अतिरिक्त न्यायाधीशों की आवश्यकता है.

‘नेशनल ज्यूडीशियरी डेटा ग्रिड’ के मुताबिक 43,63,260 मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं. मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने इस बात को रेखांकित किया था कि ज़िला और सब-डिविज़नल स्तरों पर स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 18,000 है. लेकिन मौजूदा संख्या इससे कम 15,000 ही है. दिल्ली उच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि जिस गति से मामलों को निपटाया जा रहा है, उस हिसाब से लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए 400 साल लग जाएंगे. वो भी तब जब कोई नया मामला ना आए.

हर साल मुक़दमों की संख्या बढ़ रही है, उसी हिसाब से लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है. इससे ‘न्याय में देरी यानी न्याय देने से इंकार’ की धारणा बलवती हो रही है. साल 1987 में विधि आयोग ने सुझाया था कि प्रत्येक दस लाख भारतीयों पर 10.5 न्यायाधीशों की नियुक्ति का अनुपात बढ़ाकर 107 किया जाना चाहिए. लेकिन आज ये अनुपात सिर्फ़ 15.4 है.