अपीलीय न्यायाधिकरण ने बेनामी संपत्ति मामले में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान बरी

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अपीलीय न्यायाधिकरण ने मंगलवार को अभिनेता शाहरुख खान को बेनामी संपत्ति का लाभार्थी होने संबंधी आरोपों से बरी कर दिया। न्यायाधिकरण ने मामले में आयकर विभाग की ओर से जारी संपत्ति कुर्की के आदेश को भी आधारहीन करार दिया। बता दें कि यह कार्रवाई विभाग ने अलीबाग फार्म हाउस मामले में की थी।

न्यायाधिकरण के अध्यक्ष डी. सिंघई ओर सदस्य (विधि) तुषार वी. शाह की पीठ ने मामले की सुनवाई की। पीठ ने शाहरुख और एक कंपनी डेजा वू फॉर्म्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ आदेश जारी करने के लिए आयकर विभाग को कड़ी फटकार लगाई। इस कंपनी में खान की पत्नी गौरी खान और उनके ससुराल पक्ष के लोग हिस्सेदार हैं।

पीठ ने कहा, पिछले साल फरवरी में एक स्वतंत्र निकाय द्वारा कारोबार के संदर्भ में किए गए लेनदेन को बेनामी लेनदेन के तौर पर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि इसके वित्त की व्यवस्था ऋण के माध्यम से की गई। ऐसे में हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि महाराष्ट्र के तालुका अलीबाग के ठाल गांव की यह कृषि भूमि और उस पर बना ढांचा बेनामी संपत्ति नहीं है और जांच अधिकारी द्वारा इसकी कुर्की जायज नहीं है।

न्यायाधीकरण ने आयकर विभाग को फटकार लगाते हुए कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट और ऑनलाइन लेखों पर विश्वास करके शाहरुख को आरोपी बनाना कानून की नजर में गलत और अस्वीकार्य है। बता दें कि  न्यायाधिकरण ने 23 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि इस बात का कोई आधार नहीं है कि देजा वू फार्म्स ने खान के तत्काल या भविष्य में फायदे के लिए यह संपत्ति खरीदी है।

15 करोड़ की संपत्ति पर विवाद 
आयकर विभाग ने रायगढ़ जिले के अलीबाग स्थित इस कृषि भूमि, इस पर बने फार्म हाउस और प्लॉट को कुर्क किया था। इनका मूल्य करीब 15 करोड़ रुपये है। विभाग ने मामले में मेसर्स देजा वू फार्म्स प्राइवेट लिमिटेड और 53 वर्षीय शाहरुख को वादी बनाया था।

आयकर विभाग का तर्क 
विभाग ने बेनामी संपत्ति लेनदेन रोकथाम कानून के तहत कंपनी को बेनामीदार माना, क्योंकि उसके नाम पर यह संपत्ति ली गई है। जबकि खान को इस संपत्ति का लाभार्थी माना क्योंकि उन्होंने इसके लिए भुगतान किया। विभाग का कहना था कि रायगढ़ जिला प्रशासन ने कम से कम तीन साल कृषि करने की शर्त पर यह जमीन खरीदने की इजाजत कंपनी को दी थी, जिसका अनुपालन नहीं किया गया।

सख्त कानून 
बेनामी संपत्ति कानून 1988 में बनाथा। लेकिन 2016 में केंद्र सरकार ने इसे अधिसूचित किया। इसके तहत बेनामी संपत्ति का दोषी पाए जाने पर सात साल कैद है। सात ही संपत्ति के बाजार मूल्य का 25 फीसदी जुर्माने के तौर पर वसूलने का प्रावधान है।