अफगानिस्तान में नाकामी के बाद क्या अमेरिका वापसी के बहाने ढूंढने लगा है?

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अफगानिस्‍तान दक्षिण एशिया का वो देश है जहां के लोग वर्षों से शांति और स्थिरता की बाट जोह रहे हैं। यहां पर पहले रूस और उसके बाद अमेरिका ने काफी तबाही मचाई। इसके बाद भी ये यहां से कुछ हासिल नहीं कर सके।

आलम ये है कि रूस को यहां से मुंह छिपाकर भागना पड़ा था। रूस के जाने के बाद यहां पर तालिबान ने अपने पैर पसारने शुरू किए। इसकी वजह से भी यहां पर अशांति छाई रही। तालिबान ने यहां पर अपनी सरकार तक बनाई।

इसको हटाने के नाम पर अमेरिका ने यहां पर अपनी पैठ बढ़ाई और अब वो भी अपनी वापसी के बहाने तलाश रहा है। कुल मिलाकर अफगानिस्‍तान में जो देश आया उसको खोने के अलावा और कुछ हासिल नहीं कर सका।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, अफगानिस्‍तान की राजनीतिक और आर्थिक उठापठक के बीच रूस और अमेरिका दोनों ही जिम्‍मेदार रहे हैं।वर्तमान की बात करें तो यहां पर नाटो सेनाओं के हाथों इसी वर्ष में अब तक तालिबान से ज्‍यादा आम नागरिक मारे गए हैं।

यूएन मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक नाटो सेनाओं द्वारा यहां पर की गई एयर स्‍ट्राइक और आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन के दौरान पिछले छह माह में 717 आम नागरिकों की मौत हुई हैं।

इनमें से 403 लोगो की मौत अफगान सेना और 314 की मौत नाटो सेना के हाथों हुई हैं। वहीं इन ऑपरेशंस में महज 531 तालीबानी आतंकी मारे गए हैं। हालांकि ये आंकड़ा पिछले वर्ष जनवरी-जून में हुई मौतों से करीब 43 फीसद कम है। इस वर्ष जनवरी से जून तक के बीच 20 अमेरिकी सैनिक भी यहां पर मारे जा चुके हैं।

गौरतलब है कि अफगानिस्‍तान में नाटो के करीब 13 हजार जवान तैनात हैं जिनमें से 9800 अकेले अमेरिका से ही हैं। बराक ओबामा ने यहां पर जवानों की तैनाती बढ़ाई थी जबकि मौजूदा राष्‍ट्रपति ने अपने कार्यकाल में इसको कम किया है।

आपको यहां पर बता दें कि अफगान सेना को अमेरिकी सेना प्रशिक्षित कर रही है। यह प्रशिक्षण अमेरिका की उस भावी रणनीति का हिस्‍सा है जिसके तहत वह यहां से निकल जाएगा और अफगानिस्‍तान को इन सुरक्षाबलों के हवाले कर दिया जाएगा।

तालिबान की बात चली है तो यहां पर ये भी जान लेना जरूरी होगा कि अमेरिका की पैरवी पर अफगा‍न-तालिबान शांति वार्ता के कई दौर हो चुके हैं। हालांकि यह वार्ता अब तक अपने निर्णायक दौर में नहीं पहुंची है। इतना ही नहीं इस वार्ता में अफगानिस्‍तान सरकार का कोई नुमांइदा नहीं है।

इसके अलावा तालिबान ने भी अफगानिस्‍तान से सीधी बात करने से इंकार कर दिया है। उसका कहना है कि जब तक इस शांति वार्ता से कुछ सकारात्‍मक नहीं निकलता है तब तक वह अफगान सरकार से कोई बातचीत नहीं करेगा। वहीं दूसरी तरफ तालिबान ने सीजफायर करने से भी इनकार कर दिया है।