अमेरिका: बंदूक के खिलाफ़ युवा पीढ़ी उठा रहे हैं आवाज़!

   

2018 में आज के दिन फ्लोरिडा के एक स्कूल में एक छात्र ने अंधाधुंध गोलियां चला कर 17 लोगों की जान ले ली। एक साल के भीतर अमेरिका की बंदूक संस्कृति के खिलाफ बच्चों की आवाज गूंजने लगी है और छोटा ही सही उसका असर दिख रहा है।

चौदह फरवरी, 2018. पार्कलैंड, फ्लोरिडा के मार्जोरी स्टोनमैन डगलस हाई स्कूल में दूसरे अमेरिकी स्कूलों की तरह ही वैलेंटाइंस डे का माहौल था। कुछ बच्चे दिल की शक्ल वाले गुब्बारे तो कुछ लाल गुलाब और गुलाबी कार्ड लेकर आए थे। दिन भर की पढ़ाई, मस्ती, हंसी-मजाक के बाद आखिरी पीरियड की घंटी बजने को थी।

लेकिन उसके पहले फायर अलार्म की घंटी बजी और फिर सुनाई दी गोलियों की आवाज। स्कूल के ही एक पूर्व छात्र ने एक सेमी-ऑटोमैटिक बंदूक से अंधाधुंध गोलियां बरसाकर 14 छात्रों और तीन शिक्षकों की जान ले ली।

उसके बाद जो हुआ वो नजारा अमेरिका न जाने कितनी बार देख चुका था. रोते-बिलखते मां-बाप, दो-तीन दिनों तक टीवी और ट्विटर पर लगातार बहस, रिपब्लिकन पार्टी की ओर से “थॉट्स और प्रेयर्स” यानि सोच और प्रार्थनाएं और डेमोक्रैट की ओर से एक बार फिर से बंदूकों पर लगाम कसने की मांग। उसके बाद सब कुछ वापस पुराने ढर्रे पर।

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, एमा गोंजालेस, मार्जरी स्टोनमैने डगलस स्कूल की छात्रा
लेकिन इस बार कुछ और भी हुआ। स्कूल कुछ दिनों बाद खुला। बच्चे कक्षाओं में वापस लौटे लेकिन स्कूल के बस्तों के साथ वो अपनों और दोस्तों को खोने का दर्द भी ढो रहे थे। उन्हीं में से कुछ ने एक आंदोलन की नींव रखी—नेवर अगेन एमएसडी (मार्जोरी स्टोनमैन डगलस)।

चौदह मार्च यानि ठीक एक महीने बाद उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए नेशनल स्कूल वॉकआउट का आयोजन किया और पूरे देश में छात्रों ने अपनी कक्षाओं का बहिष्कार कर बंदूकों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और फिर दस दिनों बाद वो हुआ जो अमेरिका ने कभी नहीं देखा था।

दस लाख से भी ज्यादा छात्रों ने “मार्च फॉर आवर लाइव्स” के बैनर तले वाशिंगटन पर धावा बोला, जहां नजर जाती थी सिर्फ युवा चेहरे नजर आ रहे थे, “अब और नहीं” का नारा गूंज रहा था, और जब एक के बाद एक छात्र ने मंच पर आकर उस दिन की आपबीती सामने रखी, जिन्हें खोया था उन्हें याद किया, तो अंजानों की आंखे भी नम हो रही थीं।

एक साल बाद, कॉलेज में दाखिले की माथापच्ची, स्कूल के होमवर्क, जिंदगी की लगातार जारी रेस के बीच उन्होंने बंदूकों के खिलाफ आवाज उठाना जारी रखा है। डेविड हॉग, एमा गोंजालेस, ऐलेक्स विंड, कैमरन कॉस्की, जैकलिन कोरिन ये कुछ नाम हैं जो इस आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं.

सिर्फ एक साल में उन्होंने एक हवा बनाई है जिसकी बदौलत अलग-अलग राज्यों में बंदूकों पर लगाम कसने के लिये कुल 76 कानून पास हुए हैं। कुछ राज्यों में बंदूक खरीदने की उम्र 21 साल कर दी गई है।

मिडटर्म चुनावों के कुछ महीने पहले से ही देश के कई हिस्सों का दौरा करके इन छात्रों ने युवा वोटरों को मतदान के लिए रजिस्टर करवाया और चुनावों में युवा मतदाताओं की संख्या में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई. बीस से ज्यादा ऐसे उम्मीदवार जिन्होंने बंदूक लॉबी से पैसा लिया था या उनका समर्थन कर रहे थे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।