नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अयोध्या भूमि विवाद मामले में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल को 18 जुलाई तक मामले में कार्यवाही की स्थिति प्रस्तुत करने के लिए कहा। पैनल का नेतृत्व न्यायमूर्ति एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला कर रहे हैं। मामले में गठित मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट के आधार पर ही उच्चतम न्यायालय यह फैसला करेगा कि आगे सुनवाई होगी या नहीं। अगर पैनल की रिपोर्ट कारगर नहीं रहती है तो 25 जुलाई से मामले में सुप्रीम कोर्ट रोजाना सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि यदि रिपोर्ट के माध्यम से जाने के बाद, वे पाते हैं कि यह कोई सौहार्दपूर्ण समाधान नहीं सुझाता है और मध्यस्थता समाप्त करने की आवश्यकता है, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ अपील पर 25 जुलाई से शुरू होगा।
मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेच कहा कि मध्यस्थता पैनल को अनुवाद में देरी हो रही थी, इसी वजह से उन्होंने अधिक समय मांगा था। मध्यस्थता पैनल को भंग करने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा, हमने मध्यस्थता पैनल गठित किया है। हमें रिपोर्ट का इंतजार करना होगा। मध्यस्थता करने वालों को इस पर रिपोर्ट पेश करने दीजिए।
अदालत गोपाल सिंह विशारद के पुत्र राजेंद्र सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो कि अयोध्या भूमि के संबंध में मूल नागरिक वादों में से एक थी। इसे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एस ए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नाज़र की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। विशारद ने दावा किया कि अदालत द्वारा दिए गए मध्यस्थता में “बहुत प्रगति नहीं हुई” और इसे “घोषित करने के लिए कि मध्यस्थता कार्यवाही …” घोषित करने का आग्रह किया ताकि अपील पर सुनवाई शुरू हो सके। विशारद ने मध्यस्थता के बजाय शीर्ष अदालत द्वारा मामले की सुनवाई की मांग की है। विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के एस पराशरन ने मामले में न्यायिक निर्णय की मांग की। शीर्ष अदालत ने कहा “हमने एक मध्यस्थता पैनल स्थापित किया है। हम पैनल की रिपोर्ट से जाएंगे। मध्यस्थों को इस पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने दें”।