अयोध्या विवादः पाॅपुलर फ्रंट ने मध्यस्थता का किया स्वागत; लेकिन पैनल का दोबारा गठन करने की अपील की

   

पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया की केंद्रीय सचिवालय की नई दिल्ली मुख्यालय में आयोजित बैठक ने अयोध्या मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद, एक बयान जारी करते हुए अदालत की निगरानी में मध्यस्थता की बात का स्वागत किया है। लेकिन साथ ही बैठक ने 3 सदस्यीय पैनल में विवादित चेहरा श्री श्री रवि शंकर को शामिल किये जाने पर सख़्त बेचैनी जताई है। बैठक ने यह आशा जताई है कि अगर एक रिटायर्ड जज के बजाए, माननीय चीफ जस्टिस खुद पैनल की अध्यक्ष्ता करें तो यह बहुत ही बेहतर होगा।

श्री श्री रवि शंकर विध्वस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण का खुले आम समर्थन करते नज़र आए हैं। वह कई बार मुसलमानों से बाबरी मस्जिद का दावा छोड़कर अयोध्या के बाहर किसी दूसरे स्थान पर मस्जिद कबूल करने की मांग कर चुके हैं। ऐसा भी बताया जाता है कि उन्होंने एक बार मुसलमानों को धमकी भी दी है कि अगर वे अयोध्या पर दावे को नहीं छोड़ेंगे तो भारत सीरिया बन जाएगा। एक दूसरे मौके पर उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर कोर्ट मंदिर के खिलाफ फैसला सुनाता है तो खून खराबा हो जाएगा और सरकार कोर्ट के फैसले को लागू नहीं कर पाएगी। यह देखकर बड़ा दुख होता है कि एक ऐसे विवादित व्यक्ति को मध्यस्थ का रोल अदा करने की ज़िम्मेदारी दी जा रही है जो खुलेआम हिंसा भड़काने वाली बातें करता रहा है। बैठक ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से श्री श्री रवि शंकर के नाम को पैनल से खारिज करके फैसले में संशोधन करने की अपील की।

पिछले सात दशकों से अयोध्या मामला देश में हिंसा और अफरा तफरी का कारण बना हुआ है। इंसाफ यह कहता है और देश के दो बड़े समुदायों के बीच लंबे समय तक शांति और सौहार्द्र बनाए रखने के लिए यह बात बहुत ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस मामले को तत्काल रूप से हल किया जाए। अगर मध्यस्थता से यह हल हो सकता है तो इसके लिए भी एक अवसर दिया जाए। लेकिन साथ ही यह बात भी सामने रहे कि बीते दिनों कई बार मध्यस्थता की कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन हिंदुत्व समूहों की अपने राजनीति फायदे के लिए नतीजे को प्रभावित करने की कोशिश के कारण वे असफल रहीं। बैठक पिछली कोशिशों के मुकाबले मध्यस्थता की मौजूदा कोशिश को कुछ अलग महसूस करती है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में किया जाएगा। पाॅपुलर फ्रंट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चाहे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में हल हो या मध्यस्थता की टेबल पर, लेकिन वह किसी धार्मिक आस्था या कथाओं के आधार पर नहीं बल्कि तथ्यों और रिकाॅर्ड की रोशनी में होना चाहिए।

पाॅपुलर फ्रंट की केंद्रीय सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह राय भी रखी कि वह अपने फैसले में बदलाव कर पैनल को यह निर्देश दे कि मध्यस्थता की प्रक्रिया को लोकसभ चुनाव के बाद ही शुरू किया जाए। बैठक ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस मामले में मचाई जा रही जल्दबाज़ी पर चिंता व्यक्त की, क्योंकि राजनीतिक फायदे के लिए इसका दुरूपयोग किया जा सकता है।