गुवाहाटी, 15 दिसंबर । असम भारत का पहला राज्य होगा, जहां कई सरकारी मदरसों और संस्कृत विद्यालयों के बंद होने के बाद धर्म से परे भारतीय सभ्यता के बारे में पढ़ाया जाएगा। सोमवार को राज्य के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि असम कैबिनेट ने रविवार को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की अध्यक्षता में अपनी बैठक में सभी सरकारी मदरसों और संस्कृत स्कूलों को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, और इस संबंध में एक विधेयक शीतकालीन सत्र के दौरान विधानसभा में पेश किया जाएगा, जो 28 दिसंबर से शुरू हो रहा है।
शर्मा ने मीडिया को बताया, सरकार द्वारा संचालित सभी 683 मदरसों को सामान्य विद्यालयों में परिवर्तित किया जाएगा और 97 संस्कृत टोल कुमार भास्करवर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय को सौंप दिए जाएंगे। इन संस्कृत टोल को शिक्षा और अनुसंधान के केंद्रों में परिवर्तित किया जाएगा जहां धर्म से परे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीयता की श्क्षिा दी जाएगी, जो ऐसा करने वाला असम को पहला भारतीय राज्य बनाया जाएगा।
मंत्री, जिनेक पास वित्त और स्वास्थ्य विभाग का भी प्रभार है, ने कहा कि असम में निजी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मदरसे बंद नहीं होंगे।
शर्मा ने पहले कहा था कि राज्य सरकार मदरसों को चलाने के लिए सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च कर रही है और सरकार धार्मिक शिक्षा के लिए सार्वजनिक धन खर्च नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा था कि यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर कुरान पढ़ाना जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
शिक्षा मंत्री ने सोमवार को कहा कि मदरसा शिक्षा की शुरुआत 1934 में हुई थी, जब सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला ब्रिटिश शासन के दौरान असम के प्रधानमंत्री थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में राज्य मदरसा बोर्ड के तहत चार अरबी कॉलेज भी हैं और इन कॉलेजों और मदरसों में दो पाठ्यक्रम थे, एक विशुद्ध रूप से इस्लाम पर धार्मिक विषय है, और दूसरा सामान्य माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित सामान्य पाठ्यक्रम है।
उन्होंने दावा किया कि अभिभावकों और माता-पिता के अलावा, मदरसों में नामांकित अधिकांश छात्र डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं और इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि ये नियमित स्कूल नहीं हैं।
गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर द्वारा एक सर्वेक्षण में पाया गया कि मदरसों के अधिकांश छात्रों के माता-पिता और अभिभावक इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि उनके बच्चों को नियमित विषय नहीं पढ़ाए जा रहे हैं।
–आईएएनएस
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