असम NRC पर इमरान ख़ान और ओवैसी के बयानों की मुस्लिम संगठन की निंदा!

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असम में 21 मुस्लिम संगठनों की शीर्ष संस्था ने एनआरसी पर पाक पीएम इमरान खान और एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी को उनके बयानों पर लताड़ लगाई है।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, संस्था का कहना है कि इमरान को इस मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार ही नहीं है और ओवैसी भी भ्रम फैलाना बंद करें। राज्य में मुस्लिम हिंदुओं के साथ दशकों से शांतिपूर्वक रह रहे हैं।

रविवार को संस्था के अध्यक्ष सैयद मुमिनुल अवाल ने इमरान से दो टूक कहा कि उन्हें इस मसले पर बोलने का अधिकार ही नहीं है, लिहाजा उन्हें अपना मुंह बंद रखना चाहिए। साथ ही हैदराबाद सांसद ओवैसी से कहा है कि वह एनआरसी को लेकर भ्रामक सूचनाओं से असम के लोगों को न भड़काएं।

अवाल ने मीडिया और राज्य से बाहर रह रहे लोगों से भी आग्रह किया है कि वे एनआरसी पर अटकलें और अफवाहों का प्रचार न करें। उनका कहना है कि हमें सरकार पर पूरा भरोसा है और राज्य में पूरी तरह शांति का माहौल है।

इमरान ने शनिवार को कहा था कि मोदी सरकार द्वारा ‘मुस्लिमों का सफाया’ पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। वहीं, ओवैसी ने कहा था कि एनआरसी प्रकाशन से अवैध प्रवासियों के मिथक का भंडाफोड़ हो गया है।

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर किए गए लोग फिलहाल ‘राज्यविहीन’ नहीं है। विदेश मंत्रालय ने रविवार को स्पष्ट किया कि ऐसे लोगों के सर्वाधिकार तब तक सुरक्षित रहेंगे, जब तक वे अपने बचाव के लिए कानून के तहत दिए गए सभी तरीकों का इस्तेमाल नहीं कर लेते।

विदेश मंत्रालय का यह बयान विदेशी मीडिया के कई वर्गों में एनआरसी की फाइनल सूची को लेकर आई कुछ रिपोर्ट को लेकर आया है। मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, एनआरसी अदालत के आदेश पर और निगरानी में की गई कार्रवाई है, कोई एक्जीक्यूटिव संचालित प्रक्रिया नहीं।

उन्होंने कहा, एनआरसी 1985 के असम समझौते को प्रभावी बनाएगी, जिसमें राज्य के नागरिकों की देखभाल का वादा किया गया है। एनआरसी से बाहर रहने का असम में किसी नागरिक के व्यक्तिगत अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

रवीश ने कहा, फाइनल सूची में नहीं आए लोगों को हिरासत में नहीं लिया जाएगा और वे अपने नागरिक अधिकारों का लगातार उपयोग तब तक जारी रख पाएंगे, जब तक वे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कानून के तहत दिए गए सभी तरीकों को इस्तेमाल नहीं कर लेते हैं।

उन्होंने कहा, सूची से बाहर रखना उन्हें कानूनी अर्थ के तहत ‘राज्यविहीन’ नहीं बना रहा और ‘विदेशी’ नहीं बना रहा। वे किसी भी तरह के ऐसे अधिकार से वंचित नहीं किए जाएंगे, जिसका लाभ वे पहले ले रहे थे।