इमरान थोड़ी हिम्मत करें

   

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की मुसीबतों को मैं अच्छी तरह से समझता हूं। उन्हें पाकिस्तान की जनता को बताना है कि कश्मीर के सवाल पर वे ज़मीन-आसमान एक कर देंगे। वे जुल्फिकार अली भुट्टो को भी पीछे छोड़ देंगे। भुट्टो ने कहा था कि जरुरत पड़ी तो पाकिस्तान भारत के साथ एक हजार साल तक भी लड़ता रहेगा।

पाकिस्तान के सेनापति जनरल बाजवा ने इमरान के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा है कि पाकिस्तान कश्मीर के लिए अपने खून की आखिरी बूंद तक लड़ता रहेगा। इसका जवाब भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल ने बहुत ही सधे हुए तरीके से दिया है। उन्होंने ठीक ही कहा है कि कश्मीर की शांति पाकिस्तान के रवैए पर निर्भर है। अगर पाकिस्तान कश्मीरियों को हिंसा के लिए भड़काता रहा और आतंकियों को भेजता रहा तो जो प्रतिबंध उन पर अभी लगे हुए हैं, उन्हें हटाना मुश्किल होगा।

इमरान खान को अब अच्छी तरह से पता चल गया है कि दुनिया का कोई भी देश भारत में कश्मीर के पूर्ण विलय पर आपत्ति नहीं कर रहा है। बस चीन, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश भी अब यह कहने लगे हैं कि कश्मीर में मानव अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। बिल्कुल होनी चाहिए, यह तो हम भी कह रहे हैं लेकिन इसका धारा 370 और 35 ए के खात्मे से क्या संबंध है ? कश्मीर के पूर्ण विलय से क्या संबंध है ? इमरान खान जानते हैं कि कश्मीर में जो हो चुका है, उसे पलटाया नहीं जा सकता है। हां, इतना जरुर हो सकता है, जैसे कि गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इशारा किया था कि जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा मिल जाए।

अब इमरान खान को इतिहास का पहिया उल्टा घुमाने की कोशिश करने की बजाय यह सोचना चाहिए कि दोनों कश्मीरों के कश्मीरियों का भविष्य कैसा हो ? दोनों कश्मीरी अब तक काफी नुकसान उठा चुके हैं। ‘आजाद कश्मीरियों’ को सच्ची आजादी कैसे मिले और दोनों तरफ के कश्मीरी हिंसा और आतंकवाद से छुटकारा कैसे पाएं ? कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान की फौज पाकिस्तानियों के सीने पर चढ़ी बैठी है, उसे इमरान नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा ? कश्मीर की वजह से पूरा पाकिस्तान कराह रहा है।

उसी की वजह से पहले पाकिस्तान को अमेरिका की गुलामी करनी पड़ी और अब उसे चीन की चप्पलें उठानी पड़ रही हैं। इमरान चाहें और थोड़ी हिम्मत करें तो वे पाकिस्तान को इस जन्मजात गुलामी से मुक्ति दिला सकते हैं।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक