इस्लाम को समझो: विदेशों की तरह अब भारत में भी गैर मुस्लिमों के लिए खोले जा रहे हैं मस्जिदों के दरवाजे

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भारत के प्रख्यात पत्रकार व वरिष्ठ टीकाकार शकील शमसी ने अपने ताज़ा लेख में मस्जिदों के बारे में पाई जाने वाली कुछ भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश की है।

वर्ष 2015 में ब्रिटेन के मुसलमानों ने एक अहम पहल करते हुए लगभग 20 मस्जिदों के द्वार ग़ैर मुस्लिमों के लिए खोल दिए थे और #visitmymosque के नाम से एक कैंपेन चलाई थी। इस कैंपेन के अंतर्गत उन्होंने ग़ैर मुस्लिमों के मन में इस्लाम के विरुद्ध जो भ्रांतियां पैदा कर दी गई हैं, उन्हें दूर करने की कोशिश की थी।

इस कैंपेन के कारण मस्जिदों में आने वाले ग़ैर मुस्लिमों को इस्लामी पुस्तकें पढ़ने का भी अवसर मिला। इस कैंपेन से प्रभावित हो कर भारत में हैदराबाद, पुणे, मुंबई और अहमदाबाद की कुछ मस्जिदों के दरवाज़े भी ग़ैर मुस्लिमों के लिए खोल दिए गए हैं।

इससे दोहरा फ़ायदा होगा, एक तो यह कि ग़ैर मुस्लिमों को, मुसलमानों की उपासनाओं और आस्थाओं के बारे में जानने का अवसर मिलेगा और दूसरे यह कि इससे भाईचारे और सहनशीलता में वृद्धि होगी।

भारत में यूं तो एक हज़ार साल से मुसलमान रह रहे हैं मगर यहां के ग़ैर मुस्लिमों की बड़ी संख्या को उनके बारे में बहुत कम ज्ञान है और जो ज्ञान है भी वह ग़लत फ़हमियों पर आधारित है। अज़ान के बारे में मशहूर कवि कबीर दास का एक दोहा हैः

अगर कबीर दस जी को यह पता होता कि अज़ान, अल्लाह को बुलाने के लिए नहीं बल्कि आस-पास रहने वाले मुसलमानों को बुलाने के लिए दी जाती है तो वे कभी इस तरह की बात नहीं करते। इसी प्रकार की एक घटना मेरे साथ हुई।

जब मैं दूरदर्शन में था तो मेरे एक निकटवर्ती ब्रहमन मित्र ने मुझसे कहा कि भाई अगर बुरा न मानो तो एक बात पूछूं। मैंने कहा अवश्य पूछोः उसने कहा कि मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि तुम लोग अज़ान में अल्लाह के साथ अकबर बादशाह का नाम क्यों लेते हो? जब मैंने उसको अकबर (अर्थात सबसे बड़ा) का अर्थ बताया तो वह बहुत लज्जित हुआ।

इसके अलावा मुसलमानों की आस्थाओं के बारे में ज्ञान न होने के कारण भी हमारे ग़ैर मुस्लिम भाइयों में अनेक भ्रांतियां मौजूद हैं जिनको दूर करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है और इसके लिए मस्जिदें बेहतरीन स्थान हैं लेकिन हमारे यहां तो हाल यह है कि कई मस्जिदों के बाहर बोर्ड लगे हुए हैं कि ग़ैर मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है।

ग़ैर मुस्लिमों की बात तो छोड़िए, कई मस्जिदों में इस तरह के बोर्ड भी लगे होते हैं कि देवबंदी, वहाबी, शिया या अहले हदीस का इस मस्जिद में प्रवेश करना मना है।

इस लिए भारत में कोई एेसा आंदोलन चलाना जिसमें ग़ैर मुस्लिमों को मस्जिद में आने का निमंत्रण दिया जाए, बहुत कठिन काम है लेकिन हमें विश्वास है आजके पढ़े लिखे और बड़े दिल वाले मुसलमान इस काम में रुचि लेंगे और मस्जिदों को ग़लत फ़हमियां मिटाने का केंद्र बना कर इस्लाम की एक बड़ी सेवा करेंगे।

आज जब हमारे देश में हिंदुओं के दिल में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरने की एक बहुत गहरी और सोची समझी साज़िश चल रही है, आज जबकि मुसलमानों की ओर से किए गए लाखों सामाजिक कामों की अनदेखी करके संघ परिवार के लोग मुसलमानों को तबाही और बर्बादी का चिन्ह बना कर पेश कर रहे हैं और सैकड़ों मंदिरों के लिए मुसलमानों की दी हुई जागीरों की अनदेखी करके यह प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे मुसलमान यहां केवल मंदिर तोड़ने के लिए आए थे तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उनको बताएं कि जब बाबर ने भारत पर हमला किया था तो देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने वाले एक लाख मुसलमान इब्राहीम लोधी की सेना में शामिल थे। तैमूर और नादिर शाह की सेनाओं से टकरा कर इस देश पर क़ुर्बान होने वाले भी मुसलमान ही थे।

साभार- ‘parstoday.com’

लेखक- शकील शमसी, वरिष्ठ पत्रकार