इस बार किसे दिल्ली के करीब ले जाएगा यूपी

   

लखनऊ : 2019 में बीस पड़ने के लिए सियासी सेनाएं मैदान में है। इस समर का सबसे दिलचस्प ‘युद्ध’ यूपी में ही लड़ा जाएगा। पिछली बार मोदी लहर पर सवार भाजपा की उम्मीदें इस बार भी मोदी के ही हाथ में है। विपक्ष ने जरूर ‘अस्तित्व’ की इस लड़ाई में तुरुप के सारे पत्ते खोल दिए हैं। एसपी-बीएसपी का महागठबंधन है। कांग्रेस के पास पहली बार पूरी तैयारी के साथ प्रियंका हैं। इसलिए यूपी की जमीन आंकना सबसे मुश्किल है। यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं। 2014 में भाजपा ने अपना दल के साथ 73 सीटें अपनी झोली में डाल ली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने तीन-चौथाई सीटों पर कब्जा जमाया। लेकिन, गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने खेल बदल दिया।

मुश्किल और मुमकिन सब मोदी के कंधों पर

मोदी के साथ जुगलबंदी के लिए भगवा पहने योगी आदित्यनाथ यूपी की सत्ता में काबिज हैं। ऐसे में हिंदुत्व के परंपरागत एजेंडे के लिए न नारे की जरूरत है और न किसी और चेहरे की। बावजूद इसके यूपी में लड़ाई मुश्किल रहेगी या 2014 जैसे आएंगे? यह मोदी के ही कंधों पर है। हर क्षेत्र में अलग मिजाज में बंटे यूपी में पूर्वांचल में जाति हावी है तो पश्चिम में ध्रुवीकरण से रास्ता निकलता है। सेंट्रल यूपी में विकास के साथ चेहरे जीत करते हैं तो बुंदेलखंड में बेबसी पर मरहम नतीजे तय करता है। एसपी-बीएसपी के महागठबंधन के बाद इन इन चारों क्षेत्रों में ही जीत के लिए भाजपा के पास मोदी, ‘लाभार्थी’ और राष्ट्रवाद का टॉनिक ही सबसे अहम खुराक है। केंद्र और प्रदेश की योजनाओं के करीब 3 करोड़ लाभार्थियों को भाजपा वोट में बदलने की उम्मीद कर रही है। वहीं, पुलवामा के बाद एयर स्ट्राइक से बने माहौल को मोदी की अगुवाई में भाजपा वोटरों की नस-नस में उतारने में जुटी है।

महागठबंधन : अभी नहीं तो कभी नहीं के हालात

पहली बार लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी एक मंच पर हैं। आंकड़ें गठबंधन के लिए मुफीद भी दिखते हैं, लेकिन राह मुश्किलों भरी। एसपी, बीएसपी और आरएलडी को एक साथ देखें तो यादव, दलित, मुस्लिम और जाट वोटरों की एक अभेद जुगलबंदी नजर आती है। वोटरों में इन जातियों की कुल भागीदारी 45% से अधिक है। पूर्वांचल और वेस्ट यूपी की अधिकांश सीटों पर अगर इन पार्टियों के कोर वोटर पूरी तरह एक साथ आ जाएं तो भाजपा के लिए दिल्ली दूर हो जाएगी और एसपी-बीएसपी किंगमेकर की भूमिका में होंगे। हालांकि, इनके कोर वोट बैंक में बीजेपी की घुसपैठ, मुस्लिम वोटों के बंटवारे के खतरे, गैर यादव ओबीसी में भाजपा की गहरी पैठ और निचले तबके में पहुंची योजनाओं के चलते कागजी समीकरणों को जमीन पर उतारना आसान नहीं है। 2014 में 36 लोकसभा सीटों पर भाजपा को मिले वोट एसपी- बीएसपी के कुल वोटों से ज्यादा थे।

कांग्रेस : लड़ाई हौसले की है

गठबंधन में अपनी जगह तलाश रही कांग्रेस यूपी में अकेले चुनाव में है। 2014 में महज अमेठी और रायबरेली तक सिमटने और विधानसभा चुनाव में दहाई न पार करने के बाद यूपी में उसकी लड़ाई पूरी तरह से हौसलों पर टिकी है। राहुल को तो यूपी परख चुका है, पहली बार प्रियंका गांधी आधिकारिक तौर पर यूपी की कमान संभाल रही हैं। पार्टी ने अपने दिग्गज चेहरों को भी चुनाव में परीक्षा देने के लिए कह दिया है और दूसरे दलों के प्रभावी चेहरों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। अहम यह है कि कांग्रेस के मजबूती से लड़ने में भाजपा और एसपी-बीएसपी, दोनों ही अपने लिए मौका देख रहे हैं। महागठबंधन को लगता है कि कांग्रेस भाजपा के वोट में सेंध लगाएगी और भाजपा को लगता है कि कांग्रेस ठीक लड़ी तो दलित-मुस्लिम वोट बांटेगी। पर सवाल यह है कि कमजोर संगठन के बल पर कांग्रेस कितनी मजबूती से ये जंग लड़ सकेगी?

साभार: नवभारत टाइम्स