नई दिल्ली, 29 जनवरी । विश्व की आर्थिक महामंदी के बाद से वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर सबसे खराब मंदी को जन्म दिया है, लेकिन इसका प्रतिकूल आर्थिक असर प्रारंभिक अनुमानों से काफी कम रहने की उम्मीद है। सरकार की ओर से शुक्रवार को संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2020-21 में यह बात कही गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि इस आर्थिक संकट की वजह से वैश्विक कारोबार में काफी गिरावट आई है और वस्तुओं की कीमतें कम हुई हैं तथा बाहरी वित्तीय स्थितियां काफी प्रतिकूल हुई है, जिसके कारण विभिन्न देशों की मुद्राओं और मौजूदा व्यापार संतुलन पर अलग-अलग असर हुआ है।
इसमें कहा गया है कि वर्ष 2020 में वैश्विक वाणिज्य वस्तु व्यापार घाटा 9.2 प्रतिशत कम होने का अनुमान है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि निर्यात के मुकाबले में भारत के आयात में गिरावट से अप्रैल-दिसंबर, 2020-21 में 57.5 अरब अमेरिकी डॉलर का मामूली व्यापार घाटा हुआ है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 125.9 अरब अमेरिकी डॉलर था।
सर्वेक्षण के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2020-21 में वाणिज्य वस्तु निर्यात 15.7 प्रतिशत कम रह कर 200.8 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि अप्रैल-दिसंबर, 2019-20 में यह 238.3 अरब अमेरिकी डॉलर था। इसका कारण पेट्रेलियम, तेल एवं लुब्रीकेंट्स (पीओएल) का निर्यात रहा है, जिससे समीक्षाधीन अवधि में निर्यात में उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है, जबकि गैर-पीओएल निर्यात सकारात्मक रहा है। इससे वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में निर्यात के क्षेत्र में सुधार हुआ है।
गैर-पीओएल निर्यातों, कृषि एवं इससे संबंधित उत्पादों, ड्रग्स और फॉर्मास्यूटिकल्स, अयस्क एवं धातुओं में वृद्धि दर्ज की गई है।
वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में आयात में काफी तीव्र गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन इसके बाद की तिमाही में गिरावट कम रही और इसका कारण स्वर्ण और चांदी के आयात में सकारात्मक वृद्धि और गैर-पीओएल मदों की कमी का अंतर रहा। उर्वरकों और खाद्य तेलों, ड्रग्स एवं फॉर्मास्यूटिकल्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर और अन्य वस्तुओं के चलते गैर-पीओएल, गैर-स्वर्ण और चांदी आयातों की वृद्धि को मजबूती मिली है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आयात में कमी की वजह से चीन और अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन में सुधार हुआ है।
अप्रैल-सितंबर, 2020 में सेवाओं के मदों में कुल प्राप्तियां 41.7 अरब अमेरिकी डॉलर रही और एक वर्ष पहले की इसी अवधि में यह आंकड़ा 40.5 अरब अमेरिकी डॉलर था। सेवा क्षेत्र में पुन: वृद्धि का प्राथमिक कारक सॉफ्टवेयर सेवाओं को माना जा रहा है, जो कुल सेवा निर्यात क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत है।
विदेशों में कार्यरत भारतीयों की ओर से किए गए भुगतान के तौर पर कुल निजी हस्तांतरण प्राप्तियां एच1 : वित्त वर्ष 2020-21 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 6.7 प्रतिशत की गिरावट के कारण 35.8 अरब अमेरिकी डॉलर रही।
वित्त वर्ष 2020-21 में वाणिज्य वस्तुओं के आयात में तीव्र कमी और पर्यटन सेवाओं में गिरावट की वजह से चालू भुगतान में 30.8 प्रतिशत की तीव्र कमी आई है, जबकि मौजूदा प्राप्तियां 15.1 प्रतिशत रही। इसकी वजह से चालू खाता अधिशेष 34.7 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जो कुल सकल घरेलू उत्पाद का 3.1 प्रतिशत है। आर्थिक समीक्षा 2020-21 में अनुमान लगाया गया है कि 17 वर्षों के बाद भारत के चालू खाता अधिशेष में बढ़ोतरी हुई है।
आर्थिक सर्वेक्षण में पाया गया है कि पूंजी खातों में उच्च मात्रा में एफडीआई और एफपीआई के आने से इन खातों की स्थिति बेहतर हुई है। अप्रैल-अक्टूबर, 2020 के दौरान कुल एफडीआई प्रवाह में 27.5 अरब अमेरिकी डॉलर की आवक दर्ज की गई है, जो वर्ष 2019-20 के प्रथम सात माह की तुलना में 14.8 प्रतिशत अधिक है। चालू एवं पूंजी खातों के क्षेत्र में हुए विकास से विदेशी विनिमय भंडार में बढ़ोतरी हुई है, जो आठ जनवरी, 2021 को अब तक का सबसे अधिक 586.1 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है।
वहीं सितंबर, 2020 के अंत में भारत का बाहरी कर्ज 556.2 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें मार्च, 2020 के अंत के स्तर पर 2.0 अरब अमेरिकी डॉलर (0.4 प्रतिशत) की कमी दर्ज की गई और मामूली वृद्धि के साथ इसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात 21.6 प्रतिशत रहा। ऋण जोखिम कारकों जैसे विदेशी विनिमय भंडार और कुल एवं अल्प अवधि ऋण अनुपात (वास्तविक एवं बचा हुआ) और अल्प अवधि ऋण (वास्तविक परिपक्वता) में कुल विदेशी ऋण की तुलना में सुधार हुआ है। सितंबर 2020 के अंत में ऋण सेवा अनुपात (मूलधन भुगतान) तथा ब्याज भुगतान मार्च, 2020 के अंत के 6.5 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 9.7 प्रतिशत रहा, जो कम मौजूदा प्राप्तियों को दर्शाता है।
आर्थिक समीक्षा 2020-21 में कहा गया है कि विदेशी विनिमय बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उपायों से रुपये की परिवर्तनीयता और एकतरफा वृद्धि को नियंत्रित करने में काफी सफलता मिली है। उच्च मुद्रा स्फीति की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक के समक्ष एक तरफ मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए कड़ी मौद्रिक नीति और दूसरी तरफ वृद्धि को प्रोत्साहित करने में बेहतर संतुलन बनाने जैसी स्थितियां आई। इस परि²श्य में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए, जिनमें उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन संबंधी नीति (पीएलआई), निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर ड्यूटी और करों में माफी (आरओडीटीईपी), व्यापार सामग्री आधारभूत ढांचे में सुधार पर जोर दिया शामिल है।
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