ऑटो सेक्टर और टेक्सटाइल के बाद मुश्किल में देश का चाय उद्योग, की ये अपील !

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चाय का नाम सुनकर सब लोगों के मन में एक चमक सी हो उठती है। मेहमान नवाजी से लेकर के सुबह उठने के बाद तरोताजा होने के लिए या फिर दिन में कार्य करने के बीच चाय की चुस्कियां चुस्ती लाती हैं। हालांकि चाय उद्योग मुश्किल में जी रहा है, जिससे 50 लाख से अधिक लोगों के रोजगार पर संकट के बादल छा रहे हैं। अगर सरकार ने चाय उद्योग को सहारा नहीं दिया तो फिर आने वाले समय में चाय की चुस्कियों के भी लाले पड़ जाएंगे।
लोकसभा में मुद्दे को पिछले महीने उठाते हुए भाजपा सदस्य पल्लव लोचन दास ने कहा कि चाय उद्योग की हालत खराब है। चाय उत्पादकों को उत्पाद का उचित दाम नहीं मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि चाय उद्योग से संबंध में दो कानून हैं जिसमें से एक चाय अधिनियम और दूसरा चाय बगान श्रमिक अधिनियम है। आज स्थिति यह है कि चाय उद्योग से जुड़ी बड़ी बड़ी कंपनियां बंद हो रही है, श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिल रही है। भाजपा सदस्य ने कहा कि ऐसी स्थिति में चाय अधिनियम और चाय बगान श्रमिक अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत है।
भारतीय चाय संघ (आईटीए) ने सरकार से दखल देकर चाय उद्योग के पुनरुद्धार की अपील की है। आईटीए ने बृहस्पतिवार को तमाम अखबारों में विज्ञापन देकर यह अपील की है।
आईटीए ने बृहस्पतिवार को सरकार से तीन साल के लिये चाय बागान श्रमिकों का भविष्य निधि में जाने वाले हिस्से का योगदान करने का अनुरोध किया। इसके अलावा उसने पांच साल के लिए अधिक आपूर्ति को रोकने के लिए चाय क्षेत्र के विस्तार पर भी रोक लगाने की मांग की है।
साथ ही उसने सरकार से देश की चाय के जेनेरिक संवर्द्धन के लिए एक पर्याप्त निधि बनाने पर विचार करने के लिए भी कहा है। संगठन ने सरकार से चाय की नीलामी में न्यूनतम आरक्षित मूल्य तय करने के लिए भी कहा जो उत्पादन लागत पर आधारित हो। अपनी अपील में आईटीए ने कहा कि 10 लाख से अधिक कार्यबल के रोजगार की सुरक्षा के लिए चाय क्षेत्र की व्यवहार्यता बने रहनी अनिवार्य है।
इस विज्ञापन में एक ग्राफ भी दिया गया है जिसमें पंजीकृत चाय बागानों में चाय की औसत उत्पादल लागत और उसके औसत बिक्री मूल्य का अंतर बताया गया है। यह तुलना 2013-14 और 2018-19 के आंकड़ों के बीच की गयी है।
इसके मुताबिक 2013-14 में चाय का औसत बिक्री मूल्य 150 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर था जबकि उत्पादन लागत 150 रुपये प्रति किलोग्राम से मामूली कम। वहीं 2018-19 में इसकी उत्पादन लागत 200 रुपये प्रति किलोग्राम के ऊपर पहुंच गयी जबकि बिक्री मूल्य उसी स्तर पर ही बना रहा। इससे चाय उद्योग घाटे में जाने लगा।