क़ुरआन का कानून तीन-तलाक़ के लिए सबसे बेहतरीन

   

मुसलमानों में एक बात साफ है। उनके धर्म में शादी कोई सात जन्मों का बंधन नहीं है। ये महज एक कॉन्ट्रैक्ट है जो लड़का और लड़की के बीच होता है।

जिसमें लड़का एक तयशुदा रकम मेहर के रूप में अदा करता है। ये सब लिखित रूप में गवाह, वकील और काजी की मौजूदगी में होता है। अब अगर कॉन्ट्रैक्ट है तो उससे अलग होने के तरीके भी होंगे।

इधर बात चली हैं तो ये भी सामने आया हैं कि निकाहनामा में बदलाव करके उसे मॉडल बनाया जा सकता हैं। लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली के अनुसार लड़की भी चाहे तो तलाक दे सकती है।

इसके लिए लड़की निकाहनामे में ये शर्त रख सकती है कि ट्रिपल तलाक नहीं होगा। इसके अलावा लड़की चाहे तो अपने तरफ से भी तलाक दे कर विवाह को खत्म कर सकती।

वैसे जिस तलाक ए बिददत की बात हो रही हैं उसमें भी ये प्रावधान है कि पहले और दूसरी बार तलाक कहने में समय का अंतर होना चाहिए और इस दौरान परिवार के बड़ो को विवाह को बचाने की कोशिश करनी चाहिए।

विपक्ष भले ही इसको मुद्दा बना ले लेकिन आने वाले समय में अगर ये विधेयक लागू हो गया तो मुकदमे, गिरफ्तारियां और सजा तो होनी ही है। वैसे भी ट्रिपल तलाक मुसलमानों में सिर्फ सुन्नी समुदाय तक सीमित हैं। शिया समुदाय में ट्रिपल तलाक मान्य नहीं है।

साभार- ‘डी डब्लू हिन्दी’