कांग्रेस ने इस साल झेली 2 राज्यों में बगावत, मप्र में गंवाई सत्ता

   

नई दिल्ली, 30 दिसंबर । कांग्रेस को साल 2020 में अपनी ही पार्टी में दो बगावतों का सामना करना पड़ा। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस साल मार्च में एक सफल विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसके बाद कांग्रेस सरकार गिर गई और भाजपा विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत मिलने के महज 15 महीने बाद ही सरकार बनाने में सफल रही।

इस साल कांग्रेस के लिए राजस्थान में लगभग ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी, मगर अहमद पटेल ने समय पर हस्तक्षेप करके सरकार को गिरने से बचा लिया।

मध्यप्रदेश में एक तरफ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच दूरियां बढ़ीं तो वहीं दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती तेवर सामने आने लगे। सिंधिया के समर्थकों ने पार्टी को हाशिए पर छोड़ते हुए मध्यप्रदेश में राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले अपना पाला बदल लिया, जो कि कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हुआ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जल्द ही एक बार फिर राज्य की सत्ता संभालने का मौका मिल गया।

मध्यप्रदेश में विद्रोह दो मार्च को शुरू हुआ, जब कांग्रेस 10 असंतुष्ट कांग्रेस विधायक और उनके सहयोगी हरियाणा के एक होटल पहुंचे और कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए भाजपा नेतृत्व से संपर्क किया। इस दौरान चार असंतुष्ट विधायकों ने बेंगलुरू में डेरा डाल लिया। भाजपा के संपर्क में आए सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ने का फैसला किया।

कांग्रेस ने इस दौरान किसी तरह से सरकार बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाने की कोशिश की, लेकिन पार्टी के प्रयास काम नहीं आए और 18 दिनों के गतिरोध के बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई और भाजपा ने प्रदेश में सरकार बनाई।

हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए, लेकिन विधायकों के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनावों में जीत के बावजूद वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए।

इसी तरह से राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी इस साल राज्य में विद्रोह का नेतृत्व किया, लेकिन समय पर पार्टी में चल रही तनातनी की स्थिति को संभाल लिया गया और यहां कांग्रेस सरकार गिरने से बच गई।

राजस्थान कांग्रेस के भीतर लड़ाई स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप द्वारा टैप किए गए फोन कॉल जारी करने के बाद शुरू हुई, जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री पायलट के बीच बढ़ रही दरार चर्चा का केंद्र बन गई। एसओजी की ओर से बुलाए जाने के बाद पायलट अपने वफादार विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गए और कांग्रेस ने दो बार उनसे विधायक दल की बैठक में भाग लेने की अपील की, लेकिन सब व्यर्थ रहा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह भाजपा की राजस्थान में कांग्रेस विधायकों और निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में लाकर सरकार को गिराने की योजना है।

अहमद पटेल के समय पर हस्तक्षेप ने राजस्थान में सरकार को बचा लिया और कांग्रेस ने सचिन पायलट की शिकायतों पर ध्यान देने और संकट को दूर करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इससे बाद सचिन पायलट ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और विस्तार से अपनी शिकायतें व्यक्त कीं।

विद्रोह के बाद कांग्रेस ने उपमुख्यमंत्री और राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष के पद से पायलट को हटा दिया। हालांकि राजस्थान कांग्रेस में उथल-पुथल अभी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि पायलट खेमा अपने समर्थकों को मंत्रिपरिषद, सिविक बोर्ड और निगमों में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज कराने पर जोर दे रहा है।

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