1952 के दौर में देश में रेडियो की पहुंच बहुत कम थी। तब रेडियो सिलोन से अमीन सयानी को ‘बिनाका गीतमाला’ प्रस्तुत करते हुए जैसी लोकप्रियता मिली, वैसी देश में रेडियो प्रसारण से किसी और को नहीं मिल सकी। सच कहा जाए तो देश में रेडियो और फिल्म संगीत को लोकप्रिय बनाने में उनकी आवाज और ‘भाइयों और बहनों ’ कहने के उनके अंदाज का भी बड़ा योगदान है।
अब तक वह रेडियो पर देश-विदेश में विभिन्न भाषाओं में 54 हजार शो प्रस्तुत कर चुके हैं। पिछले महीने उम्र के 86 साल पूरे कर चुके अमीन सयानी की आवाज में आज भी वही खनक और वही दम-खम है जिसके लिए दुनिया उनकी दीवानी रही है। प्रस्तुत हैं पिछले दिनों अमीन सयानी से हुई प्रदीप सरदाना की बातचीत के अंश:
• प्रसारण की दुनिया में आप जिस शिखर तक पहुंचे, बरसों बाद भी कोई और वहां तक नहीं पहुंच पाया। अपनी इस बड़ी यात्रा को आज आप खुद कैसे देखते हैं?
खुशी होती है कि मुझे लोगों ने इतना प्यार और सम्मान दिया। हालांकि अनेक सफलताओं के साथ मेरी जिंदगी में इतनी तकलीफें आईं, इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि अगर ऊपर वाले की मेहरबानी न होती और मेरे सुनने वालों की दुआएं न होतीं तो मैं कब का मर ही गया होता।
• ऐसा क्या? आपको तो ऊपर वाले ने सब कुछ दे दिया है?
सच है, बहुत कुछ दिया ऊपर वाले ने। लेकिन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बचपन से मेरे साथ जुड़ गईं थीं। फिर घर बदलने और ऑफिस बदलने जैसी कई तकलीफें आती रहीं। बरसों से इतना काम करने पर भी मेरी कमाई ज्यादा नहीं हुई। मैं अपनी कार के लिए एक ड्राइवर रखना भी कभी अफोर्ड नहीं कर सका। एक समय मैं खुद कार चलाता था। आज मेरा बेटा चलाता है, तभी गुजारा चल रहा है।
• सुना था कि आपके एक कान में कुछ तकलीफ हो गई थी। क्या उसके अलावा भी स्वास्थ्य संबंधी कोई बड़ी समस्या रही?
कान की तकलीफ तो बचपन से ही थी। दस साल की उम्र में ही मेरा एक कान खराब हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि 65 साल तक अपने सभी प्रसारण का काम मैं सिर्फ एक कान से करता रहा। पर अब जब जिंदगी की शाम की बेला आई है तब मेरा दूसरा कान भी खराब हो गया है। मजबूरी में ‘हियरिंग एड’ लेना पड़ा जिसकी कीमत 75 हजार थी। इसमें मेरी सारी बचत राशि खर्च हो गई, जिसका मुझे काफी दुःख हुआ। अब वह मशीन भी पुरानी पड़ गई तो मैंने मुश्किल से 35 हजार की एक नई हियरिंग एड ली है। कभी पुरानी इस्तेमाल करता हूं तो कभी नई। फिर भी सुनने में दिक्कत होती है।
• इन दिनों आप क्या नया कर रहे हैं? किसी नए रेडियो कार्यक्रम की भी योजना है?
अभी नया कार्यक्रम नहीं कर रहा, पर अपने कई पुराने कार्यक्रमों पर रिवर्क कर रहा हूं। हाल ही में अपने कुछ पुराने कार्यक्रमों को नई शक्ल देकर विदेशों में पहुंचाया है। इसके अलावा जो भी थोड़ा बहुत काम हो सकता है, कर लेता हूं। जैसे ढाई-तीन साल पहले सारेगामा ने मुझसे पूछा कि गीतमाला पर कुछ नया शुरू कर सकते हैं तो मैंने कहा, हां ‘गीतमाला की छांव में’ नाम देकर वे बातें रख सकते हैं जो गीतमाला में नहीं रहीं। तब यह सीरीज की, जो सभी को पसंद आ रही है। लेकिन रेडियो कमर्शल पर सरकार ने कई बरसों से जो टैक्स लगाया हुआ है, उससे मुझ जैसे व्यक्ति को काफी परेशानी आती है।
• आप अपने करियर की शुरुआत के बारे में कुछ बताएं। क्या आवाज की इस दुनिया से आपका लगाव इसलिए हुआ कि आपके बड़े भाई हमीद सयानी रेडियो पर अनाउंसर थे?
हां, मेरे बड़े भाई बहुत बड़े इंग्लिश ब्रॉडकास्टर थे और मेरे गुरु भी वही रहे। मैं सात बरस का था जब मेरे भाई मुझे मुझे ऑल इंडिया रेडियो के चर्च गेट (मुंबई) ऑफिस में ले गए। तभी मैंने अपना पहला इंग्लिश ब्रॉडकास्ट किया था। बाद में मुझे पढ़ने के लिए ग्वालियर के सिंधिया स्कूल जाना पड़ा। वहां थिएटर से मेरा लगाव हो गया। 1947 में जब आजादी मिली तब मैं ग्वालियर में था। तब बहुत खुशी थी कि हम नए भारत के नौजवान हैं। लेकिन कुछ समय बाद पता लगा कि गांधी जी नहीं रहे, तब मेरा दिल टूट गया। मैं उन्हें बचपन से बहुत पसंद करता था। गांधी जी चाहते थे, हिंदुस्तान की भाषा हिंदुस्तानी बने। तब मैंने दुआ मांगी कि मैं एक हिंदुस्तानी ब्रॉडकास्टर बनूंगा, न कि अंग्रेजी का।
• बिनाका गीतमाला आपको कैसे मिली? क्या यह कार्यक्रम शुरू में ही लोकप्रिय हो गया था?
जब बिनाका गीतमाला शुरू होने की बात हुई तब इसके सभी कार्यों के लिए सिर्फ 25 रुपये मिलना तय हुआ। इतने कम में कोई बड़ा उद्घोषक तैयार नहीं हुआ। तब मैंने हाथ उठा दिया। आश्चर्य तब हुआ जब पहले ही कार्यक्रम में श्रोताओं के 9 हजार पत्र आ गए और बाद में तो 65 हजार तक पत्र आने लगे। बाद में हमने इसमें हिट परेड शुरू किया, जिसमें फिल्म गीतों को लोकप्रियता के हिसाब से पायदान देने का काम देश में सबसे पहले मैंने ही शुरू किया। हालांकि यह बहुत मुश्किल काम था, लेकिन मैंने इसे बेहद ईमानदारी और कड़ी मेहनत से निभाया। उसी का नतीजा है कि आज तक ‘गीतमाला’ को लोग नहीं भूले हैं।
(डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं)