खुलासा : छह सालों में 3.5 गुना बढ़ी ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी

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भारत में पिछले छह साल में ग्रामीण क्षेत्रों में साढ़े तीन गुना से ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी है। वहीं, सबसे ज्यादा बेरोजगारी शहरी क्षेत्र की युवतियों की बीच है। यह खुलासा केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों से हुआ है।

दूसरी ओर बुधवार की देर रात जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में भारत की बेरोजगारी की दर बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गई, जो अक्टूबर 2016 के बाद सबसे अधिक है और मार्च में 6.71 प्रतिशत थी।

मुंबई स्थित सीएमआईई थिंक-टैंक के प्रमुख महेश व्यास ने रॉयटर्स को बताया, “मार्च में कम बेरोजगारी दर एक झपकी थी, और यह फिर से पहले के महीनों की प्रवृत्ति के बाद चढ़ गई है।”

एनएसएसओ और पीएलएफएस के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2005-06 में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 3.9 प्रतिशत थी। यह दर वर्ष 2009-10 में बढ़कर 4.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। वर्ष 2011-12 में यह 5 प्रतिशत पहुंची और अगले छह वर्ष बाद 2017-18 में साढ़े तीन गुना से ज्यादा बढ़कर 17.4 प्रतिशत तक पहुंच गई।

ग्रामीण क्षेत्र के युवतियों की रोजगार की बात करें तो वर्ष 2005-06 में यह 4.2 प्रतिशत थी। वर्ष 2009-10 में थोड़ी सी बढ़त के साथ 4.6 प्रतिशत पर पहुंची। वर्ष 2011-12 में यह 4.8 प्रतिशत तक पहुंची। इसके बाद अगले छह वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 13.6 प्रतिशत पर पहुंच गई।

गौरतलब है कि सरकार ने हाल ही में नौकरियों के आंकड़ों को रोक दिया था क्योंकि अधिकारियों ने कहा कि उन्हें इसकी सत्यता की जांच करने की आवश्यकता है। भारत आमतौर पर हर पांच साल में केवल आधिकारिक बेरोजगारी के आंकड़े जारी करता है।

लेकिन दिसंबर के बेरोजगारी के आंकड़े एक अखबार को लीक कर दिए गए थे और यह दिखाया गया था कि 2017/18 में कम से कम 45 वर्षों में बेरोजगारी दर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। सरकार ने कहा है कि वह साल में एक बार नौकरियों के आंकड़े जारी करेगी।

सीएमआईई ने जनवरी में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि 2016 के अंत में उच्च मूल्य वाले बैंकनोटों के विमुद्रीकरण के बाद 2018 में लगभग 11 मिलियन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी और 2017 में एक नए माल और सेवा कर के अराजक लॉन्च ने लाखों छोटे व्यवसायों को प्रभावित किया। ।