क्या जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या से पहले होनी थी इस सउदी नेता की हत्या?

   

इस्तांबुल स्थित सऊदी कांसुलेट में सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की निर्मम हत्या के साढ़े तीन महीने बाद, एक सऊदी नेता ने कहा है कि बेरूत स्थित सऊदी दूतावास में उनके साथ भी वही सब कुछ होने वाला था, जो ख़ाशुक़जी के साथ हुआ।

‘parstoday.com’ सऊदी विपक्षी नेता मान अल-जराबा ने एक ऑनलाइट न्यूज़ डिबेट में यह बड़ा रहस्योद्घाटन किया कि सऊदी अधिकारियों ने उनके लिए सित्मबर में यह जाल बिछाया था।

जराबा के अनुसार, ख़ाशुक़जी की निर्मम हत्या से कुछ दिन पहले लेबनान स्थित सऊदी दूतावास में उनकी हत्या की साज़िश रची गई थी।

ग़ौरतलब है कि पिछले साल दो अक्तूबर को सऊदी अधिकारियों ने इस्तांबुल स्थित कांसुलेट में ख़ाशुक़जी की हत्या करके आरी से उनके शव के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे।

तुर्क सरकार ने ख़ाशुक़जी हत्याकांड की जांच में बताया था कि सऊदी पत्रकार की हत्या का आदेश सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने दिया था।

जराबा एक प्रभावशाली सुन्नी क़बीले शम्मार से संबंध रखते हैं और आले सऊद परिवार से इनके रिश्ते रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद वे देश में संविधान के संकलन और लोकतंत्र व्यवस्था की वकालत करते रहे हैं।

अल-जराबा का कहना है कि वे शिया धर्मगुरू शेख़ निम्र बाक़िर अल-निम्र की विचारधारा और शिक्षाओं पर चलने वाले हैं, जो सऊदी अरब में शांतिपूर्ण ढंग से राजनीतिक सुधारों के पक्षधर थे।

सऊदी सरकार ने राजनीतिक सुधारों की मांग के आरोप में ही शेख़ निम्र का 2016 में सिर क़लम कर दिया था।

जराबा के एक निकटवर्ती सूत्र ने भी अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर मिडिल ईस्ट आई से बात करते हुए कहा है कि जराबा के साथ यह घटना बेरूत स्थित सऊदी दूतावास में ख़ाशुक़जी की हत्या से क़रीब 10 दिन पहले घटी थी।

ख़ाशुक़जी की ही तरह सऊदी अधिकारियों ने जराबा से कहा था कि वे उनसे बात करना चाहते हैं, ताकि स्वदेश वापसी के लिए उन्हें राज़ी कर सकें।

सऊदी शासन द्वारा शेख़ जराबा का नाम ब्लैक लिस्ट में डाले जाने के वर्षों बाद, बेरूत में सऊदी दूतावास के अधिकारियों ने उनसे संपर्क किया और कहा, उन्हें स्वदेश वापस लौटाने के लिए वे उनसे वार्ता करना चाहते हैं।

हालांकि जराबा ने सऊदी अधिकारियों से कहा कि वह उनसे किसी सार्वजनिक स्थान जैसे कि रेस्टोरेंट या कैफ़े में मुलाक़ात कर सकते हैं। लेकिन सऊदी अधिकारी उन पर दूतावास की इमारत या उससे संबंधित एक इमारत में मुलाक़ात के लिए दबाव डाल रहे थे।

आख़िरकार दोनों पक्षों में सऊदी दूतावास से संबंधित एक इमारत में बैठक पर सहमति बनी। जिब जराबा अपने अंगरक्षकों के साथ पहुंचे तो सऊदी दूतावास के अधिकारियों ने इस पर आश्चर्य जताया और कहा कि आप अकेले ही बैठक में भाग ले सकते हैं।

सऊदी अधिकारियों ने जराबा को स्वदेश वापस लौटने और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया और कुछ दिन बाद फिर से दूतावास में मिलने का आग्रह किया।

लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद, इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में ख़ाशुक़जी की हत्या की ख़बर फैल गई, जिसके बाद उन्होंने अपनी अगली बैठक स्थगित कर दी।

शेख़ अल-जराबा का कहना है कि उन्होंने शुरू से ही सऊदी अधिकारियों पर विश्वसास नहीं किया, इसलिए वे अपने अंगरक्षकों को ख़ुद से जुदा करने के लिए तैयार नहीं हुए, जिसके कारण उनकी जान बच गई।