क्या यमन में ज़ंग लड़ने का फैसला सऊदी अरब का सही नहीं था?

   

सऊदी अरब ने यमन युद्ध छेड़ तो दिया लेकिन अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनसे पता चलता है कि इस युद्ध में सफलता पाने के लिए रियाज़ सरकार ने हर रास्ता अपनाया मगर उसके हाथ कुछ भी नहीं आया।

सऊदी अरब को पहले से ही अनुमान था कि यमन की सेना और स्वयंसेवी बलों से लड़ पाना उसके बस की बात नहीं है इसी लिए उसने यमन की लड़ाई के लिए अलग अलग देशों से सैनिकों का बंदोबस्त करने की कोशिश की।

सऊदी अरब ने पाकिस्तानी सैनिकों की मदद लेनी चाहिए मगर पाकिस्तान में इस मुद्दे पर विवाद हो गया और संसद में इस पर हंगामा मच गया। सऊदी अरब ने सूडान सहित कुछ अफ़्रीक़ी देशों की मदद ली मगर वहां भी कठिनाइयां पेश आईं तो रिटायर्ड सैनिकों यहां तक कि नाबालिग बच्चों की भी भर्ती करनी पड़ी।

न्यूयार्क टाइम्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सऊदी अरब ने यमन युद्ध के लिए तैयार करने के उद्देश्य से सूडान में लोगों को भारी मेहनताने की पेशकश की।

दारफ़ूर के इलाक़े में सऊदी अरब को किराए के लड़ाके मिल गए जहां आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब है। यमन में सूडान के लगभग 14 हज़ार लड़ाके मौजूद हैं जिनमें से सैकड़ों लड़ाके झड़पों में मारे गए हैं। इन लड़ाकों में अधिकतर का संबंध जनजवीद नामक चरमपंथी संगठन से है।

इन लड़ाकों ने बताया कि उन्हें यमन के युद्ध में अलग अलग मोर्चों पर तैनात किया गया जबकि कहीं भी सऊदी सैनिक आगे नहीं आते थे बल्कि सऊदी अफ़सर केवल फोन से निर्देश दिया करते थे।

सऊदी अरब की इस संदर्भ में बड़ी आलोचना की गई है कि यमन युद्ध में सऊदी सेना पूरी तरह नाकाम साबित हुई है क्योंकि इस सेना को कई दशकों से किसी भी लड़ाई का कोई अनुभव नहीं है। सऊदी अरब ने हमेशा अपने प्राक्सी संगठनों की मदद से अपने सामरिक लक्ष्य साधने की कोशिश की है ख़ुद अपने सैनिकों को वह लड़ाई के मोर्चों पर नहीं भेज सका है।

सऊदी अरब की इस नीति की आलोचना अमरीका जैसे उसके घटक देश भी कर रहे हैं। इन घटकों का कहना है कि सऊदी अरब अमरीका को अपनी लड़ाइयों के लिए प्रयोग करना चाहता है और अमरीका इस भूमिका में खुद को देखना पसंद नहीं करता।

यमन युद्ध के मोर्चे इतने ख़तरनाक साबित हुए हैं कि सऊदी प्रशासन ने शाही परिवार के कुछ लोगों को सज़ा के तौर पर यमन युद्ध के मोर्चे पर भेजा हालांकि यह सैनिक अग्रिम पंक्ति में नहीं जाते बल्कि सूडान तथा अन्य देशों के किराए के सैनिकों को आगे रखते हैं। मगर सऊदी सैनिकों के लिए पीछे की पंक्तियों में तैनात होना भी बहुत कठिन है।

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की जितनी आलोचना विदेशों में हो रही है उतनी ही निंदा देश के भीतर भी हो रही है कि यमन युद्ध छेड़ कर उन्होंने पूरे सऊदी अरब को एक बड़ी मुसीबत में डाल दिया।

साभार- ‘parstoday.com’