क्या संयुक्त अरब अमीरात अल- कायदा को हथियार सप्लाई कर रहा है?

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यमन के उग्रवादियों के पास पश्चिम के हथियार हैं. एमनेस्टी इंटरनेशल का आरोप है कि ये हथियार संयुक्त अरब अमीरात ने सप्लाई किए हैं. कुछ उग्रवादी अल कायदा से जुड़े हैं.

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटनेशनल ने संयुक्त अरब अमीरात पर यमन के उग्रवादियों को पश्चिमी हथियार देने के आरोप लगाए हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बयान जारी कर कहा, “अमीरात की सेनाओं ने पश्चिमी और अन्य देशों से अरबों डॉलर के हथियार हासिल किए, वो भी सिर्फ बेइमानी से यमन के उग्रवादियों को सप्लाई करने के लिए. उग्रवादी किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं और युद्ध अपराधों के लिए जाने जाते हैं.”

जॉर्डन की राजधानी अम्मान में स्थित अरब रिपोर्ट्स ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म और अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कैसे ये हथियार अल कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों तक पहुंच रहे हैं.

यमन में 2014 में ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. यूएई और सऊदी अरब तब से ही यमन के कई सुन्नी उग्रवादी गुटों का समर्थन कर रहे हैं. दोनों हूथियों को यमन की सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं.

मानवाधिकार संगठन के मुताबिक विद्रोही गुटों की हिंसा की वजह से यमन में बड़ी संख्या में आम लोग मारे जा चुके हैं. देश का दक्षिणी हिस्सा और पश्चिमी तट सुन्नी विद्रोही गुटों के नियंत्रण में है. यूएई ने अपने प्रभाव वाले इलाकों में हजारों हथियारबंद यमनी लड़ाकों को ट्रेनिंग भी दी है. वहीं राजधानी साना समेत ज्यादातर बड़े शहर हूथी विद्रोहियों के कब्जे में हैं.

यूएई की सरकार ने एमनेस्टी के बयान पर कोई प्रतिक्रिया अभी नहीं दी है. जर्मन मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक जर्मनी के हथियार भी यमनी विद्रोहियों तक पहुंचे हैं.

कई पश्चिमी देश यूएई और सऊदी अरब को हथियार और खुफिया सूचनाएं मुहैया कराते हैं. लेकिन 2018 में तुर्की के सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद पश्चिमी देशों ने यूएई और सऊदी अरब पर यमन के युद्ध को खत्म करने का दबाव बढ़ा दिया.

खगोशी की हत्या दिसंबर 2018 में इस्तांबुल में सऊदी कंसुलेट में की गई. तुर्की का आरोप है कि हत्या के पीछे सऊदी अरब की सत्ता का हाथ है.

मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि यमन में ईरान और सऊदी नेतृत्व वाला गठबंधन युद्ध अपराधों में शामिल है. दोनों धड़ों पर बंदियों को प्रताड़ित करने के आरोप भी हैं.

डी डब्ल्यू हिन्दी के अनुसार, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हथियार विक्रेता देशों से अपील करते हुए कहा है कि जब तक जोखिम कम नहीं हो जाता, तब तक वे हथियारों की ब्रिकी निलंबित कर दें. संगठन का कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो हथियार मानवाधिकार कानूनों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल होते रहेंगे.