क्या सऊदी अरब की इजरायल से दोस्ती मुसलमानों के लिए खतरनाक साबित होगा?

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सऊदी अरब और इस्राईल के संबंधों में बड़ा उतार चढ़ाव रहा है। एक समय वह था जब सऊदी अरब इस्राईल पर हमले करने में आगे आगे था मगर फिर धीरे धीरे संबंधों में बदलाव आया जिसका कारण सऊदी अरब पर अमरीका का गहरा प्रभाव था।

सऊदी अरब ने कई दशकों पहले ही इस्राईल से ख़ुफ़िया तौर पर बातचीत शुरू कर दी थी और बहुत से मामलों में दोनों के बीच समन्वय शुरू हो गया।

हद तो यह हो गई कि इस्राईल से युद्धरत हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे संगठनों के खिलाफ़ इस्राईल की कार्यवाहियों में सऊदी अरब मदद देने लगा मगर दूसरी ओर सऊदी अरब की सरकार इस बात का ढिंढोरा भी पीटती रही कि वह फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की समर्थक है।

सऊदी अरब ने कभी भी खुलकर इस्राईल से अपने संबंधों की बात नहीं मानी मगर बीच बीच में इशारे ज़रूर देता रहा। सऊदी अरब ने इसके लिए अपने पूर्व अधिकारियों का इसतेमाल किया। पूर्व इंटेलीजेन्स चीफ़ तुर्की फ़ैसल तथा पूर्व सैन्य अधिकारी जनरल अनवर इशक़ी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है जो अनेक अवसरों पर खुले आम इस्राईली अधिकारियों से मिलते रहे और इस्राईल सऊदी अरब संबंधों की बात भी करते रहे।

मुहम्मद बिन सलमान जबसे सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बने तब से सऊदी अरब इस्राईल संबंधों में एक बदलाव यह देखने में आया कि सऊदी अरब अधिक खुलकर इस्राईल का समर्थन करने लगा।

बिन सलमान ने अमरीका दौरे पर इस्राईल और ज़ायोनिंयों के पक्ष में जो बयान दिए उस पर फ़िलिस्तीनियों ने गहरा रोष जताया। बिन सलमान ने तो फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास को रियाज़ बुलाकर उन्हें पैसे का प्रलोभन दिया और डील आफ़ सेंचुरी को स्वीकार करने के लिए उन पर दबाव डाला।

सऊदी अरब ने इस्राईल जाने वाले भारतीय विमानों के लिए अपनी वायु सीमा खोल दी इसी तरह फ़िलिपीन से इस्राईल जाने वे विमानों को भी सऊदी अरब की वायु सीमा से गुज़रने की अनुमति का रास्ता खुल गया।

अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू सऊदी अरब की यात्रा करने वाले हैं। अमरीकी अख़बार वाल स्ट्रीट जरनल ने अपनी रिपोर्ट में यह सवाल उठाया है कि क्या बहुत जल्द इस्राईली प्रधानमंत्री सऊदी अरब की यात्रा पर जाकर मुहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात करने वाले हैं?

अखबार का कहना है कि अमरीका की ट्रम्प सरकार लगभग दो साल से कोशिश कर रही है कि इस्राईल और सऊदी अरब खुलेआम सहयोग शुरू कर दें।

मुहम्मद बिन सलमान की समस्या यह है कि वह इस्राईल से दोस्ती तो चाहते हैं लेकिन उन्हें इस बात का अंदाज़ा भी है कि एसा कोई क़दम उठाने की स्थिति में इस्लामी व अरब दुनिया में सऊदी अरब के खिलाफ़ भावनाएं उत्तेजित होंगी मगर दूसरी तरफ़ वह वरिष्ठ सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के बाद के हालात से इस बुरी तरह घिर गए हैं कि उन्हें खुद को बचा पाना बहुत मुश्किल नज़र आ रहा है और उन्हें यह आशा है कि यदि इस्राईल ने साथ दे दिया तो वह ज़रूर बच जाएंगे।

इस समय अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो मध्यपूर्व की यात्रा पर आने वाले हैं जबकि अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन इस्राईल की यात्रा पर जाएंगे।

पोम्पेयो की कोशिश मध्यपूर्व के देशों को यह संदेश देना है कि अमरीका मध्यपूर्व के इलाक़े से बाहर नहीं निकल रहा है और अपने घटकों को अकेला नहीं छोड़ेगा।

इस बीच मुहम्मद बिन सलमान ने भी अमरीका का दूतावास तेल अबीब से बैतुल मुकद्दस स्थानान्तरित किए जाने पर सामने आने वाली प्रतिकर्या को देखकर यह अनुमान लगाया है कि यदि इस्राईल से सऊदी अरब के संबंधों का एलान कर दिया जाए तो भी कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

इस्राईल और नेतनयाहू के साथ ही ट्रम्प भी इस कोशिश में हैं कि नेतनयाहू सऊदी अरब का दौरा कर लें क्योंकि यह बड़ी घटना होगी और तीनों को अपनी अपनी मुसीबतों से कुछ राहत मिल सकती है।

इस समय नेतनयाहू आर्थिक भ्रष्टाचार के मामले में उलझे हुए हैं, ट्रम्प अनगिनत समस्याओं में फंसे हुए हैं और बिन सलमान को यमन युद्ध तथा जमाल ख़ाशुकजी की हत्या कांड के भायनक दुष्परिणामों से अपनी गर्दन बचानी है। यह यात्रा हो जाती है तो कुछ देर के लिए ही सही मीडिया और विभिन्न गलियारों का ध्यान नेतनयाहू की सऊदी अरब यात्रा की ओर मुड़ जाएगा।

मगर यहां एक बड़ी समस्या यह है कि तीनों ही नेता जनता की ताक़त को कम करके आंक रहे हैं मगर सच्चाई यह है कि जनता की ताक़त बहुत बड़ी है। यदि जनता का संयम समाप्त हुआ तो तीनों ही नेताओं को बहुत भारी पड़ेगा।

साभार- ‘parstoday.com’