क्या सऊदी अरब की नीतियों के कारण अरब NATO बन रहा है कमजोर?

   

हमें अमरीकी अख़बार वाल स्ट्रीट जनरल की इस रिपोर्ट से पहले भी असली स्थिति मालूम थी कि सुन्नी अरब देशों सऊदी अरब, इमारात, क़तर, बहरैन, ओमान, कुवैत, जार्डन और मिस्र को शामिल करके “अरब नैटो” की स्थापना करने का अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का एजेंडा आईसीयू में पहुंच चुका है क्योंकि पिछले सप्ताह वार्सा में होने वाले सम्मेलन में इस एजेंडे को ज़ोरदार झटका लगा जहां अरब इस्राईल दोस्ती को मज़बूत करने की कोशिश की जा रही थी ताकि ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू इस एलायंस का नेतृत्व संभालें।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, वार्सा सम्मेलन के बाद हालत यह है कि इसमें भाग लेने वाले अरब विदेश मंत्री अपने अपने देशों में भारी जनाक्रोश का सामना कर रहे हैं और इन देशों की ताक़तवर मीडिया भी इस हक़ीक़त पर पर्दा डालने में पूरी तरह नाकाम है। अरब जनता में अरब इस्राईल दोस्ती को लेकर भारी ग़ुस्सा है।

इस्राईल से दोस्ती के लिए कुछ अरब देशों ने जो रूचि दिखाई है उसका पूरे अरब जगत में भारी विरोध किया गया, दूसरी ओर इलाक़े में ईरान के नेतृत्व वाले इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे का लगातार मज़बूत होना यह सारी चीज़ें वह हैं जिन्होंने समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है और इन्हीं चीज़ों ने अरब नेताओं को अपने रवैए पर पुनरविचार करने पर मजबूर कर दिया।

यह कितनी घटिया बात है कि ब्रिटेन को छोड़कर यूरोपीय संघ के सभी देशों के विदेश मंत्रियों ने इसी तरह यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरीका मोग्रीनी ने वार्सा सम्मेलन से ख़ुद को दूर रखा, चीन, रूस, तुर्की और भारत ने भी अपने विदेश मंत्री इस सम्मेलन में नहीं भेजे मगर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो और ट्रम्प के दामाद जेर्ड कुशनर की एक आवाज़ पर 12 अबर देशों के विदेश मंत्री वार्सा पहुंच गए।

इससे भी बुरी बात यह है कि मलेशिया के राष्ट्रपति महातीर मुहम्मद ने अपने देश की धरती पर होने वाली खेल प्रतियोगितया में इस्राईली खिलाड़ियों को आने से रोक दिया मगर फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों की राजधानियों में इस्राईली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद की देखरेख में इस्राईली खिलाड़ियों और अधिकारियों की आवाजाही का सिलसिला जारी है!

अरब जगत में जनता अब इस मामले में हरकत में आ चुकी है और उसने इस्राईल से दोस्ती के लिए छटपटा रही अरब सरकारों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया है साथ ही जनता ने अरब सरकारों के ताक़तवर मीडिया को भी नाकाम कर दिया है जो अपने नेताओं की ग़लतियों पर पर्दा डालने की कोशिश में था।

जिसने भी जनता की भावनाओं को अनदेखी की और इस्राईल को अपना मित्र समझा वह एक दिन ज़रूर पछताएगा बल्कि उसे निश्चित रूप से भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।