क्या हिलने लगी हैं इस्राईल की बुनियादें? क्या तेल अबीब में बनेगी फ़िलिस्तीनियों की सरकार?

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इस्लामी गणतंत्र ईरान की सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई अपने कई बयानों में इस्राईल के मिट जाने की बात कह चुके हैं। सोमवार 31 दिसम्बर 2018 को फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव ज़्याद अन्नुख़ाला से मुलाक़ात में बड़ा महत्वपूर्ण बयान दिया है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि तेल अबीब में फ़िलिस्तीन की सरकार का गठन होगा। तेल अबीब को ज़ायोनी शासन ने अपनी राजधानी बनाया है और इस्राईल की कोशिश है कि फ़िलिस्तीन के शेष रह गए क्षेत्रों को भी अपने क़ब्ज़े में ले ले और फ़िलिस्तीनियों को पूरी तरह इस इलाक़े से बेदख़ल कर दे। अमरीका की योजना डील आफ़ द सेंचुरी का लक्ष्य यही था और इसी योजना के तहत बैतुल मुक़द्दस को अमरीका ने इस्राईल की राजधानी घोषित किया था।

मगर पश्चिमी एशिया के इलाक़े में एक मज़बूत एलायंस मौजूद है जिसे इस्लामी प्रतिरोध मोर्चा कहा जाता है। इस मोर्चे में सीरिया, इराक़, लेबनान और फ़िलिस्तीन के हमास व जेहादे इस्लामी जैसे संगठन शामिल हैं। इस मोर्चे ने पूरे मध्यपूर्व के इलाक़े में अमरीका व इस्राईल तथा उनके घटकों को ज़बरदस्त चुनौती दी है। इस पूरे मोर्चे का यह मानना है कि इस्राईल का अस्तित्व ग़ैर क़ानूनी है। सम्राज्यवादी शक्तियों ने इस्लामी जगत के खिलाफ़ एक भयानक साज़िश के तहत 1948 में फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी शासन की स्थापना कर दी और लगातार इस गैर क़ानूनी के शासन के दायरे में विस्तार करवाया। इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे का यह स्टैंड है कि जिस तरह धीरे धीरे इस्राईल ने अपने ग़ैर क़ानूनी अस्तित्व का विस्तार किया है उसी तरह धीरे धीरे उसके क़ब्ज़े वाले इलाक़ों को आज़ाद कराया जाए।

यदि मध्यपूर्व के हालात पर नज़र डाली जाए तो यह नज़र आता है कि इस्लामी प्रतिरोध मोर्चा अपनी योजना को धीरे धीरे आगे बढ़ा रहा है जबकि अमरीका और इस्राईल की ताक़त इस इलाक़े में क्षीण होती जा रही है। एक महीना पहला ग़ज़्ज़ा पट्टी में स्थित फ़िलिस्तीनी संगठनों और इस्राईल के बीच टकराव हुआ तो इस्राईल 48 घंटे भी इस युद्ध को सहन नहीं कर सका और तत्काल उसने मिस्र की मदद लेकर संघर्ष विराम कर लिया। हालांकि इससे पहले इस्राईली अधिकारी युद्ध को लंबा खींचने की कोशिश करते थे जिसके दौरान व अपनी ताक़त का प्रदर्शन करते थे।

इस स्थिति को सामने रखते हुए यदि ईरान के सुप्रीम लीडर के बयानों पर नज़र डाली जाए तो बहुत आसानी से यह बात समझी जा सकती है कि इस्लामी प्रतिरोध मोर्चा बड़ी ठोस योजना के साथ आगे बढ़ रहा है। सुप्रीम लीडर ने सोमवार को कहा कि तेल अबीब में फ़िलिस्तीनी सरकार का गठन होगा और वह दिन दूर नहीं जब फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की अंतिम विजय व्यवहारिक हो जाएगी। उनका कहना था कि फ़िलिस्तीन के विषय में बिलकुल नया समीकरण पैदा हो चुका है। नया समीकरण यह है कि यह प्रतिरोध जारी रहा तो विजय मिलेगी और प्रतिरोध जारी न रहा तो विजय नहीं मिलेगी और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने साबित कर दिया है कि वह प्रतिरोध का सिलसिला बंद करने वाला नहीं है। एक समय वह था कि जब इस्लामी प्रतिरोधक संगठनों से इस्राईल का टकराव हुआ तो इस्राईल 22 दिन के बाद और फिर 8 दिन के बाद युद्ध विराम पर मजबूर हुआ और हालिया झड़प में तो वह 48 घंटे के भीतर ही संघर्ष विराम करने पर मजबूर हो गया जिसका अर्थ यह है कि ज़ायोनी शासन ने घुटने टेक दिए।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई यह कह चुके हैं कि इस्राईल भविष्य के 25 साल नहीं देख पाएगा। यदि ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनियों और मुसलमानों का संघर्ष जारी रहा तो इस्राईल का अस्तित्व बाक़ी नहीं बचेगा।

टीकाकार यह कहते हैं कि ज़मीनी सतह पर जो बदलाव आ रहे हैं वह यही संकेत दे रहे हैं कि इस्राईल भविष्य के 25 साल नहीं देख पाएगा। इसलिए कि इस्लामी जगत के बीच में इस्राईल को साज़िश के तहत स्थापित किया गया और इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अमरीका तथा उसके घटकों ने हमेशा बहुत मेहनत की लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अमरीका ख़ुद को समेटने पर मजबूर है तो उसके लिए इस्राईल की रक्षा कर पाना कठिन हो गया है।