चंद्रयान-2 : सिवन के 98 प्रतिशत सफलता के दावे पर इसरो के कई वरिष्‍ठ वैज्ञानिकों ने चुनौती दी

   

इसरो के चेयरमैन के सिवन के चंद्रयान-2 मिशन के 98 सफल होने के दावे के ठीक बाद कई वरिष्‍ठ वैज्ञानिकों ने इस दावे को चुनौती दी है। एक वैज्ञानिक ने तो सोशल मीडिया पर सिवन के नेतृत्‍व और रॉकेट साइंस के विचार पर ही सवाल उठा दिया। एक वरिष्‍ठ वैज्ञानिक ने कहा कि ‘बिना गंभीर आत्‍मविश्‍लेषण के इस तरह के दावे दुनिया के सामने हमें हंसी का पात्र बना देंगे।’

इस बीच सूत्रों ने कहा है कि विक्रम बहुत तेजी से चंद्रमा की सतह पर गिरा और क्रैश हो गया। चंद्रमा पर उतरने को ही इस मिशन की सबसे चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया मानी जा रही थी। इसरो चेयरमैन के सलाहकार तपन मिश्रा ने सोशल मीडिया पर किए गए अपने पोस्‍ट में सिवन का नाम लिए बिना उनके नेतृत्‍व पर निशाना साधा। मिश्रा ने कहा, ‘नेता प्रेरित करते हैं, वे मैनेज नहीं करते।’

मून मिशन में विशेषज्ञता रखने वाले एक वैज्ञानिक ने कहा कि इस मिशन में तकनीकी गड़बड़ियां की गईं। उन्‍होंने कहा, ‘क्‍या इसरो एक थ्रस्‍टर के साथ गया था या पांच। तकनीक को आसान और सामान्‍य होनी चाहिए ताकि उसे आसानी से हैंडल किया जा सके। यह परंपरागत प्रक्रिया पूरी दुनिया में फॉलो किया जाता है।’ उन्‍होंने कहा कि कई थ्रस्‍टर होने की वजह से उसे हैंडल करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।

‘हमें एक इंजन की योजना पर काम करना चाहिए था’
इसरो वैज्ञानिक ने कहा, ‘हर समय सभी 5 थ्रस्‍टरों के इंजन को हमेशा एक जैसा नहीं रखा जा सकता है। हमें एक इंजन की योजना पर काम करना चाहिए था।’ उन्‍होंने आरोप लगाया कि इसरो के वर्तमान नेतृत्‍व ने चंद्रयान-1 मिशन में काम करने वाले सक्षम लोगों को इस बार के मिशन से हटा दिया। वैज्ञानिक ने कहा, ‘जो लोग चंद्रयान-1 मिशन में कभी हिस्‍सा भी नहीं रहे, वे अब विशेषज्ञों के दल में शामिल हैं और देश के चंद्र मिशन के लिए महत्‍वपूर्ण फैसले ले रहे हैं।’

अमेरिका में रह रहे वैज्ञानिक भारत ठक्‍कर ने विक्रम को लेकर कई सवाल उठाए हैं। उन्‍होंने कहा कि विक्रम के डिजाइन का पोस्‍टमॉर्टम होना बेहद जरूरी है। तपन मिश्रा ने लिखा, ‘यदि आपके स्‍कूटर का टायर सड़क पर पंचर हो जाता है तो उसे ठीक करने के लिए आप मकैनिक को बुलाते हैं और अपना सफर जारी रखते हैं। लेकिन अगर किसी स्‍पेसक्राफ्ट या रॉकेट में कुछ गलत हो जाता है तो आपको इसे भूलना होगा। स्‍पेस साइंस और तकनीक में करीब 100 फीसदी विश्‍वसनियता बेहद जरूरी है।’