चीन-भारत संबंधों के बारे में सही दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत

   

बीजिंग, 18 मई । चीन-भारत संबंधों के विकास से एशिया और यहां तक कि पूरी दुनिया की स्थितियों पर प्रभाव पड़ता है। पिछले दर्जनों वर्षों में, चीन और भारत दोनों का उल्लेखनीय आर्थिक विकास हासिल किया गया है, और दोनों के बीच आर्थिक सहयोग एक नए स्तर पर पहुंच गया है।

जैसे कि वर्तमान में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। महामारी की स्थिति में भी दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग की समग्र प्रवृत्ति नहीं बदलेगी। उधर, चीन में दुनिया का सबसे पूर्ण विनिर्माण उद्योग है, जबकि भारत की आईटी सेवा उद्योग में स्पष्ट श्रेष्ठता भी प्रसिद्ध है। लेकिन कुछ पश्चिमी देशों और भारत में ही ये बल भी मौजदू हैं जो चीन और भारत के बीच सामान्य सहयोग की राह में बाधा डालती रहती हैं और कुछ शक्तियों ने भारत का, चीन के विकास को रोकने के लिए एक औजार के रूप में उपयोग करने का प्रयास किया।

भविष्य में भारत का आर्थिक विकास विनिर्माण उद्योग के पुनरोद्धार पर निर्भर है, क्योंकि केवल विनिर्माण उद्योग ही आर्थिक विकास के स्तर को उठा सकता है और भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में रोजगार की समस्या का समाधान कर सकता है। इस अनुभव की पुष्टि चीन की विकास प्रक्रिया में ही की गई है। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास करने की मुख्य शक्ति अभी भी सेवा उद्योग है।

आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत में अमेरिकी कंपनियों के लिए आईटी सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों की संख्या 20 लाख तक पहुंच गई है, और कई लाख भारतीय आईटी प्रतिभा अमेरिका में काम कर रहे हैं। अधिक से अधिक अमेरिकी कंपनियों ने भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित किए हैं। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे कई अमेरिकी उच्च तकनीक दिग्गजों के सीईओ भारतीय मूल के हैं। कहा जा सकता है कि भारतीय अप्रवासी अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों की रीढ़ बन गए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आईटी उच्च प्रौद्योगिकी के बारे में भारत के स्पष्ट फायदे हैं, लेकिन भारतीय प्रतिभाओं को उनके अपने देश में कैसे रखा जाए, यह भविष्य में हल करने की भी बड़ी आवश्यकता है।

भारत के आर्थिक विकास की प्रक्रिया में चीन एक और अपरिहार्य कारक है। चीन और भारत के बीच सहयोग न केवल चीन के लिए, बल्कि भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। चीन के द्वारा पेश की गईं सभी पहल, चाहे वह बेल्ट एंड रोड हो या चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा आदि, सभी एशिया और विकासशील देशों के आर्थिक पुनरोद्धार पर ध्यान केंद्रित है। इसमें भारत के लिए कुछ भी हानिकारक तत्व नहीं है। हालांकि, भारत में कुछ लोग और मीडिया सहयोग के बजाय टकराव के दृष्टिकोण से इन चीनी पहलों की व्याख्या करते हैं। लेकिन खेद की बात है कि गलत संज्ञानात्मक आधार चीन-भारत टकराव के लिए पृष्ठभूमि बन गया है।

सौभाग्यवश, मीडिया में मित्रतापूर्ण माहौल न होने की स्थिति में भी, भारतीय थिंक टैंक के पास फिर भी सकारात्मक और तर्कसंगत समझ बनी रही है। उदाहरण के लिए, मार्च में भारतीय थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित इंडिया इकोनॉमिक एंड डिप्लोमैटिक आउटलुक 2030 रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन से भारतीय अर्थव्यवस्था का डिकॉप्लिंग होना पूरी तरह से अवास्तविक है, क्योंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीनी अर्थव्यवस्था गहन रूप से अंतर्निहित हो चुकी है।

एक तरफ, सफलतापूर्वक महामारी को नियंत्रित करने के बाद चीनी अर्थव्यवस्था तेजी से ठीक हुई है, दूसरी तरफ चीन ने भारत के बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और डिजिटल उद्योगों में काफी निवेश किया है। उदाहरण के लिए, भारत के ऑटो उद्योग के निवेश में चीन का 40 फीसदी हिस्सा है। भारत चीनी पूंजी के खिलाफ एकतरफा भेदभाव वाली नीति नहीं अपना सकता। उधर भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन पहल (एससीआरआई), जिसका उद्देश्य चीन पर अपनी निर्भरता को कम बनाना है, वास्तव में अपने उद्देश्य को प्राप्त करना मुश्किल है। इसलिए भविष्य में भारत आर्थिक स्तर पर चीन के साथ सहयोग से नहीं बच पाएगा।

चीन और भारत के बीच कुछ असुलझे सीमा मुद्दे हैं, जो दोनों देशों के बीच संघर्ष होने का प्रत्यक्ष कारक हैं। लेकिन ऐसा कोई कारण नहीं है कि चीन और भारत मौजूदा सवालों को शांतिपूर्ण और समझदारी से हल नहीं करेंगे। पर इसकी सफलता दोनों देशों के बीच आपसी समझ और विश्वास पर निर्भर है। यदि मौजूदा संघर्ष को युद्ध घटित होने तक बिगड़ने दिया जाए, तो चीन और भारत दोनों को नुकसान होगा, और दोनों की राष्ट्रीय पुनरोद्धार योजनाएं भी बुरी तरह प्रभावित होंगी।

इसलिए, चीन और भारत को संघर्ष की अपरिहार्यता के विचार को छोड़ देना चाहिए, दीर्घकालिक हितों के दृष्टिकोण से द्विपक्षीय संबंधों के विकास के बारे में सोचना चाहिए और गलतफहमी और पूर्वाग्रहों को खुले और ईमानदार तरीकों से बदलना चाहिए। उदाहरण के लिए, वर्तमान महामारी को रोकने के लिए चीन सक्रिय रूप से भारत को विभिन्न तरीकों से मदद कर रहा है, पर कुछ भारतीय मीडिया ने यह अफवाह फैला दी है कि चीन ने महामारी का मौका पकड़कर अपनी सीमावर्ती तैनाती को मजबूत किया है।

चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे के लिए पूरक हैं और चीनी कंपनियों के निवेश से भारत में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलेगी। दोनों देशों के व्यापार और निर्यात से कच्चे माल से लेकर बाजार तक एक-दूसरे की जरूरतें पूरी हो जाएंगी। उम्मीद की जा सकती है कि महामारी के बाद चीन और भारत के बीच आर्थिक सहयोग के नए अवसर पैदा होंगे। चीन-भारत आर्थिक संबंधों के बारे में सही दृष्टिकोण रखना और गलतफहमियों और पूर्वाग्रहों से बचना अनिवार्य है।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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