जमाल ख़ाशुक़जी हत्या: आरोपियों पर सऊदी अरब की कार्रवाई सिर्फ़ दिखावा!

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सऊदी अरब की एक अदालत ने पहली ही सुनवाई में पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के 11 आरोपियों में से 5 को मौत की सज़ा सुना दी है। सऊदी पत्रकार ख़ाशुक़जी को 2 अक्तूबर 2018 को इस्तांबुल स्थित सऊदी कांसूलेट में बहुत ही निर्मम तरीक़े से क़त्ल कर दिया गया था।

तुर्क सरकार और अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए का कहना है कि उनके पास इस बात के पुख़्ता सुबूत हैं कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ख़ाशुक़जी की हत्या का आदेश दिया था।

विश्व समुदाय के भारी दबाव के बाद सऊदी शासन ने 22 लोगों को ख़ाशुक़जी की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया है। निःसंदेह यह लोग इस जघन्य अपराध में शामिल रहे होंगे, लेकिन यह अदालती कार्यवाही मुख्य आरोपी मोहम्मद बिन सलमान को बचाने और सऊदी अरब से विश्व समुदाय के दबाव को कम करने के उद्देश्य से की जा रही है।

अदालत ने इस मुक़दमे के पहले ही दिन 11 में से 5 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुना दी, इससे यह स्पष्ट होता है कि मुक़दमे की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही इन लोगों की सज़ा पर फ़ैसला हो चुका था।

दूसरे यह कि ख़ाशुक़जी हत्याकांड के समस्त सुबूत अंकारा के पास हैं, रियाज़ ने तुर्क सरकार को 2 पत्र लिखकर यह इन सुबूतों की मांग की थी, लेकिन तुर्की ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। अब यहां यह सवाल उठता है कि जब अंकारा ने रियाज़ को सुबूत नहीं दिए हैं, तो किस आधार पर सऊदी अदालत ने आरोपियों को मौत की सज़ा सुना दी?

संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार कार्यालय ने भी जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या से संबंधित सऊदी अदालत की कार्यवाही पर प्रश्न चिन्ह लगाया है।
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रविना शमदासानी ने भी इस अदालती कार्यवाही पर प्रतिक्रिया जताते हुए अंतरराष्ट्रीय भूमिका के साथ स्वतंत्र जांच की मांग की है।

इस मुक़दमे के संबंध में सऊदी सरकार की जल्दबाज़ी से यही स्पष्ट होता है कि मोहम्मद बिन सलमान के ख़िलाफ़ समस्त सुबूतों के बावजूद, दूसरे आरोपियों को सज़ा देकर मुख्य आरोपी को बचाया जा रहा है।

साभार- ‘parstoday.com’