जमाल ख़ाशुक़जी हत्या: क्या प्रिंस सलमान जांच टीम का सामना करेंगे?

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तुर्की की सरकार और ख़ुद राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान ने चेतावनी दी थी कि वह सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के प्रकरण को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाएंगे, अब यह लग रहा है कि तुर्की ने अपनी इस धमकी पर अमल करना शुरू कर दिया है और सऊदी अरब गंभीर क़ानूनी पचड़े में फंसने वाला है।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ ने एग्नेस कालामर्ड की अध्यक्षता में जांच दल का गठन कर दिया है जिसने जमाल ख़ाशुक़जी हत्याकांड से संबंधित लोगों और संस्थाओं से पूछताछ शुरू कर दी है। टीम ने तुर्की में अपना काम शुरू किया है और आने वाले जून महीने में वह अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश कर देगी।

कालामर्ड तुर्की की राजधानी अंकारा पहुंच चुकी हैं और उन्होंने सऊदी अरब की सरकार के सामने औपचारिक रूप से मांग रख दी है कि वह इस्तांबूल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में होने वाली अपराधिक घटना की जांच के लिए वाणिज्य दूतावास का दौरा करना चाहती हैं और अंकारा में सऊदी राजदूत से भी मुलाक़ात करना चाहती है जबकि इसके बाद अपनी टीम के साथ जिसमें तीन चिकित्सक भी शामिल होंगे वह सऊदी अरब का भी दौरा करेंगी, मगर अब तक उन्हें अंतिम सूचना मिलने तक सऊदी अरब की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।

यह भी तय है कि तुर्क सरकार जिसके दिल में सऊदी सरकार के लिए किसी तरह की हमदर्दी नहीं है बल्कि वह सऊदी सरकार को अपने शत्रुओं की सूचि में सबसे ऊपर रखती है, वह सारे साक्ष्य पूरे विस्तार के साथ जांच टीम के सामने रखेगी जो सऊदी वाणिज्य दूतावास में वरिष्ठ पत्रकार की निर्मम हत्या से जुड़े हैं। तुर्क अधिकारी, रिकार्डिंग, तसवीरें और समीक्षाएं जांच टीम के सामने रख सकते हैं।

यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि कालामर्ड ने अमरीकी ख़फ़िया एजेंसी सीआईए के अधिकारियों से भी मिलने की मांग की है ताकि सीआईए के पास मौजूद जानकारियों से भी वह अवगत हो सकें विशेष रूप से सीआईए की निदेशिका जीन हैस्पेल से भी वह जानकारियां लेना चाहती हैं जो कह चुकी हैं कि उन्हें यह विश्वास है कि सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने ही ख़ाशुक़जी की हत्या का आदेश जारी किया है।

हैस्पेल की इस गवाही का अमरीकी सेनेट से वह प्रस्ताव पारित होने में सबसे बड़ा हाथ था जिसमें सर्वसम्मति से यह कहा गया कि इस भयानक अपराध के ज़िम्मेदार मुहम्मद बिन सलमान हैं। यह आम सहमति सेनेट के इतिहास में अभूतपूर्व कही जाती है।

सऊदी प्रशासन ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया कि सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर ख़ाशुक़जी की हत्या की गई, उनके शव के टुकड़े किए गए और इन टुकड़ों को एक तुर्क एजेंट के हवाले किया गया। सऊदी एटार्नी जनरल ने 21 लोगों की गिरफ़तारी का आदेश दिया जो इस हत्याकांड से जुड़े हैं और उनमें से पांच को मृत्यदंड देने की मांग की अलबत्ता किसी का नाम नहीं बताया है।

यहां एक बड़ा सवाल यह है कि क्या सऊदी सरकार इस जांच टीम को सऊदी अरब की यात्रा की अनुमति देगी? और यदि यात्रा की अनुमति दी तो क्या सभी आरोपियों से मिलने और उनके बयान लेने की अनुमति देगी? इससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या मुहम्मद बिन सलमान आरोपी के रूप में इस जांच टीम के सामने पेश होंगे?

सऊदी अरब का रिकार्ड देखा जाए तो उसने हमेशा ही अपने नागरिकों और अधिकारियों के ख़िलाफ़ हर प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय जांच का विरोध किया है। रियाज़ सरकार इस प्रकार की जांच को अपनी संप्रभुता का हनन मानती है। यही कारण है कि उसने अमरीकी फ़ेडरल पुलिस एफ़बीआई के जांचकर्ताओं को भी इस बात की अनुमति नहीं दी थी कि वह 1996 में सऊदी अरब के अलखुबर इलाक़े में अमरीकी सैनिक ठिकाने में होने वाले बम धमाके के मामले के चार आरोपियों से पूछगछ करने की अनुमति नहीं दी थी। इस धमाके में 19 अमरीकी सैनिक मारे गए थे। सऊदी प्रशासन ने उस समय कहा था कि केवल उसके अपने जांचकर्ता ही इस मामले की जांच करेंगे। विस्फोटकों से भरी गाड़ी अमरीकी ठिकाने तक पहुंचाने में मदद करने वाले चार आरोपियों को सऊदी प्रशासन ने मृत्युदंड दिया था। यह सब सऊदी नागरिक थे।

जमाल ख़शुक़जी की हत्या और अलखुबर का आत्मघाती धमाका दोनों अलग प्रकार की घटनाएं हैं ख़ाशुक़जी हत्याकांड की जांच करने वाली टीम अंतर्राष्ट्रीय जांच टीम है इस तरह सऊदी अरब पर दबाव बढ़ जाता है कि वह जांच में सहयोग करे और पूरी पारदर्शिता के साथ सारी जानकारियां दें वरना दूसरी स्थिति में उसके ख़िलाफ सुरक्षा परिषद में कार्यवाही शुरू हो जाएगी। यह भी संभव है कि अमरीका और यूरोप के समर्थन से विशेष अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का गठन हो जाए।

ख़ाशुक़जी हत्याकांड की जांच अभी आरंभिक चरण में है मगर अभी से सऊदी अरब और सऊदी अधिकारियों के लिए ख़तरे की घंटी बजने लगी है।