जम्मू-कश्मीर: मजबूत सियासत की तरफ़ बढ़ रहे हैं शाह फैसल!

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सरकारी नौकरी छोड़ रियासत की सियासत में सक्रिय हुए पूर्व नौकरशाह शाह फैसल ने सोमवार को अपने पैतृक कस्बे कुपवाड़ा में जनसभा से सियासी सफर की शुरुआत की।

उन्होंने लोगों को यकीन दिलाते हुए कहा कि मैं कश्मीरियों के मान-सम्मान के लिए लड़ते हुए भ्रष्टाचार को मिटाऊंगा। वर्ष 2009 के टॉपर आइएएस शाह फैसल से लोगों की उम्मीदों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रैली में लोग कश्मीरी में यी करी ती करी, फैसल करी लो लो, नारे लगा रहे थे।

इसका मतलब है यह करेगा, वह करेगा जो करेगा फैसल करेगा। यह नारा नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला के लिए लगाया जाता था। लोग उन्हें बब के नाम से संबोधित करते हुए नारे लगाते थे यी करी ती करी बब करी लो लो।

कुपवाड़ा से मिली सूचनाओं को अगर सही माना जाए तो लोग बर्फ से बंद रास्तों और ठंड की परवाह किए बिना उसकी रैली में पहुंचे। फैसल के करीबियों के मुताबिक, रैली की पहले कोई योजना नहीं थी। कुपवाड़ा में सिविल सोसाइटी के लोगों से बैठक का आयोजन किया गया था, लेकिन जब लोगों को पता चला कि शाह फैसल आया है तो भीड़ बढ़ती गई और फिर रैली में बदल गई। मैंने कश्मीरियों पर जुल्म को सहा

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, फैसल ने संबोधित करते हुए कहा कि वह सियासत में सिर्फ कश्मीरियों के मसलों को सियासी तरीके से हल करने के लिए शामिल हुआ है। उसने कहा मैं कश्मीरियों क मान सम्मान के लिए लडूंगा।

कश्मीर से भ्रष्टाचार चाहे वह सियासत में हो या प्रशासनिक तंत्र में, उसे मिटाना मेरा मकसद है। मैने एक लंबा लेकिन सीधा रास्ता चुना है। यही रास्ता मुझे कश्मीर की बेहतरी की मंजिल तक ले जाएगा। आप लोगों ने बीते दस वर्षो के दौरान यही सुना और सोचा होगा कि मैं सरकार की सेवा कर रहा हूं, लेकिन मैं एक कैदखाने में था।

मैंने जुल्म और प्रताड़ना देखी। मैंने कश्मीरियों पर जुल्म को सहा, मैं खुद को समझाता था कि मैं खुद से नाइंसाफी कर रहा हूं। एक दिन सोचा कि सबकुछ छोड़कर अमेरिका चला जाऊं

फैसल ने कहा जब मैंने नौकरी छोड़ सियासत में शामिल होने का इरादा व्यक्त किया तो बहुत से लोग मेरे पास आए। उन्होंने मुझे कहा कि सियासत से दूर रहो, यह सही नहीं है।

मैं उनसे कहा कि बेशक सियासत में गंदगी है फिर भी लोग सियासतदानों के पीछे चलते हैं। इसलिए हमें इसका हिस्सा बनकर इसे सुधारना चाहिए। मैंने एक दिन सोचा कि यहां सबकुछ छोड़कर अमेरिका चला जाऊं और वहीं पर काम करूं, लेकिन मैंने सोचा कि जब मेरा पड़ोसी यहां तकलीफ बर्दाश्त कर रहा है, मुश्किल में जी रहा है तो मुझे उसे यूं छोड़कर अमेरिका जाने का कोई हक नहीं है।

मुझे उसकी मुश्किल दूर करनी चाहिए। इसलिए मैंने यहीं पर रहने और सियासत में उतरने का फैसला किया। मैं बड़ा अधिकारी न बन जाऊं, इसलिए करते थे परेशान

पूर्व नौकरशाह ने कहा कि यहां जब मैं सरकारी सेवा में था तो बहुत से लोग मुझे बर्दाश्त नहीं करते थे, वह सोचते थे कि मैं कोई बड़ा अधिकारी न बन जाऊं। इसलिए मुझे कई तरीकों से परेशान करते थे। यहां व्यवस्था में ही बहुत भ्रष्टाचार है और जो यहां की नीतियां हैं वह राज्य को बेहतर मुस्तकबिल के लिए संसाधनों और अवसरों की खोज की अनुमति नहीं देती।