जम्मू-कश्मीर मामले में पाकिस्तान क्यों नहीं जुटा पा रहा है मुस्लिम देशों का समर्थन ?

   

मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के विरोध में पाकिस्तान ने बेहद कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उसने भारतीय उच्चायुक्त को निष्कासित कर दिया है और इसके साथ ही द्विपक्षीय व्यापार को भी निलंबित कर दिया है. इसके अलावा पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस को भी हमेशा के लिए बंद करने का ऐलान किया है. पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सहित तमाम वैश्विक मंचों पर उठाएगा और कोशिश करेगा कि विश्व समुदाय भारत पर इस निर्णय को वापस लेने का दबाव बनाए.

यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुंचा भी. पाकिस्तान के करीबी सहयोगी चीन की वजह से परिषद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई. लेकिन यहां भी पाकिस्तान अलग-अलग नजर आया. चीन के अलावा उसे किसी से समर्थन नहीं मिला. इस बीच पाकिस्तान को मुस्लिम देशों से उम्मीद थी कि वे उसके समर्थन में बयान देंगे. लेकिन इस्लामिक सहयोग संगठन (आईओसी) और ज्यादातर मुस्लिम देशों – यूएई, सऊदी अरब, ईरान, मलेशिया और तुर्की – ने इस मसले पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. ओआईसी और सभी ताकतवर मुस्लिम देशों ने भारत और पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाने का सुझाव दिया है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने तो कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा तक बता दिया है.

मुस्लिम देशों के इस रुख पर पाकिस्तान के ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के कई लोग भी काफी हैरान हैं. सवाल उठता है कि समय-समय पर कश्मीर को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते रहने वाला मुस्लिम जगत आखिर इस समय चुप क्यों है? क्यों संभावना से उलट वह भारत के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा?

विदेश मामलों के जानकार इसकी कई वजह बताते हैं. ये लोग कहते हैं कि इसकी पहली बड़ी वजह मध्यपूर्व के देशों के भारत के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते हैं. भारत की गिनती सऊदी अरब, क़तर, ईरान और यूएई के सबसे बड़े तेल और गैस के खरीदारों में होती है. पिछले कुछ सालों में इन सभी देशों के साथ उसने कई बड़े व्यापारिक समझौते भी किए हैं. भारत इन देशों में बड़ा निवेश कर रहा है और इन देशों की कंपनियां भी भारत में ऐसा ही कर रही हैं. हाल ही में दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी कही जाने वाली सऊदी अरब की अरामको ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के तेल और पेट्रोरसायन कारोबार में करीब 15 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई की अपनी पहली यात्रा के दौरान वहां के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद के साथ | फोटो : एएफपी

इसी तरह 2015 में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई की यात्रा पर गए थे तो दोनों देशों के बीच कई बड़े समझौते हुए थे. आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए यूएई ने भारत में अपने निवेश को आधारभूत संरचना कोष के जरिए 75 अरब डॉलर यानी पांच लाख करोड़ रुपए तक करने की घोषणा की थी. दोनों देशों के बीच तय हुआ था कि वे अगले पांच साल में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर लगभग 100 अरब डॉलर तक ले जाएंगे. सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि दोनों के बीच व्यापार लगातार बढ़ा है. वर्तमान में यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार और चौथा सबसे बड़ा तेल-गैस आपूर्तिकर्ता देश है.

मध्यपूर्व मामलों के जानकार क़मर आग़ा बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, ‘यूएई और सऊदी अरब दोनों भारत में निवेश बढ़ाना चाहते हैं. दोनों मिलकर महाराष्ट्र में एक बड़ी रिफ़ाइनरी भी लगाने वाले हैं. इसमें 50 फीसदी साझेदारी उनकी होगी, बाक़ी आधी साझेदारी ओएनजीसी जैसी भारतीय कंपनियों की होगी. इसके अलावा यूएई की योजना तो भारत के प्राइवेट सेक्टर में भी बड़ा निवेश करने की है.’

पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी अपनी एक टिप्पणी में लिखते हैं, ‘अन्य देश अपने हितों के बारे में पहले सोचते हैं, फिर पाकिस्तान के इन देशों से संबंध काफी कमजोर भी हैं…भारत का तुर्की के साथ सालाना व्यापार 8.6 अरब डॉलर का है जबकि पाकिस्तान का व्यापार महज एक अरब डॉलर ही है. इसी तरह मलेशिया के साथ भारत का व्यापार पाकिस्तान से 14 गुना अधिक है.’

विशेषज्ञों के मुताबिक अरब और बाकी बड़े मुस्लिम देश भारत के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को दिन-प्रतिदिन मजबूत बनाना चाहते हैं. उन्हें अंदाजा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में कमी आने के बावजूद यह साढ़े छह से सात फीसदी की दर से आगे बढ़ सकती है और इसका आकार भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से नौ गुना है. दूसरी तरफ पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसकी विकास दर 3.5 फीसदी से भी कम है. कुछ जानकार कहते हैं कि भारत जहां अरब देशों में निवेश की बात करता है तो वहीं पाकिस्तान केवल कर्ज लेने के लिए वहां का रुख करता है.

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद अरब देशों से संबंध प्रगाढ़ हुए

जानकार कश्मीर मसले पर मुस्लिम देशों की चुप्पी के पीछे का एक बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इन देशों से बनाए गए नए स्तर के राजनयिक संबंधों को भी मानते हैं. बीते सालों में इजरायल से बेहतर संबंधों की परवाह न करते हुए नरेंद्र मोदी ने न केवल फिलस्तीन, जॉर्डन और ओमान का दौरा किया, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में फिलस्तीन के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर भी खुद को तटस्थ रखा. यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी के रूप में कोई भारतीय प्रधानमंत्री 34 साल बाद यूएई, 58 साल बाद फिलस्तीन, 30 साल बाद जॉर्डन और 10 साल बाद ओमान पहुंचा था.

फिलस्तीन ने नरेंद्र मोदी को ‘ग्रैंड कॉलर’ सम्मान से सम्मानित किया था, यह विदेशी मेहमानों को दिया जाने वाला वहां का सर्वश्रेष्ठ सम्मान है | फोटो : ट्विटर / पीएमओ

जानकारों की मानें तो अब मुस्लिम देशों की भारत को लेकर सोच बदली है. उन्हें यह अहसास हुआ है कि भारत से भी उनके बेहद करीबी रिश्ते हो सकते हैं, और इन रिश्तों को केवल पाकिस्तान के चश्मे से ही नहीं देखा जाना चाहिए. विशेषज्ञों के मुताबिक हाल-फिलहाल में अगर भारत ने हाथ बढ़ाया है तो मध्यपूर्व के देशों ने भी उसे गले लगाया है. कमर आगा कहते हैं, ‘पाकिस्तान की हमेशा ये कोशिश रही कि सऊदी अरब और यूएई कभी भारत के क़रीब न आएं, लेकिन नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद हमने देखा कि लगभग 50 साल बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस (मोहम्मद बिन सलमान) और फिर यूएई के क्राउन प्रिंस भी भारत आए. यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है.’

मध्यपूर्व मामलों के कुछ जानकार तो यह भी बताते हैं कि जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से मध्यपूर्व के देशों से भारत के कूटनीतिक रिश्तों में एक व्यक्तिगत पहलू भी विकसित हुआ है. कई मौकों पर इन रिश्तों का पता भी चला. 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई पहुंचे थे तो वहां के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद और उनके पांचों भाई एयरपोर्ट पर मोदी के स्वागत के लिए आए थे, जो छोटी बात नहीं है. इसके बाद जब यूएई के क्राउन प्रिंस और सऊदी के क्राउन प्रिंस बिन सलमान भारत आए तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें खुद लेने एयरपोर्ट पर पहुंचे थे. विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री को यूएई का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ज़ायेद मेडल’ मिलना बताता है कि भारत को लेकर यूएई का क्या रुख है.

बीते साल जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलस्तीन सहित कई मुस्लिम देशों की यात्रा पर गए थे, तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा था कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा को बड़े परिदृश्य में देखने की जरूरत है. मंत्रालय का कहना था कि इस यात्रा का मकसद केवल अंतरराष्ट्रीय एजेंडों की दिशा तय करना ही नहीं बल्कि, घरेलू एजेंडों को पूरा करना भी है. इस हवाले से जानकार कहते हैं कि तब इस बयान का साफ़ मतलब था कि जब भारत कश्मीर जैसे मामलों में कुछ बड़ा करे तो मुस्लिम देश पाकिस्तान के पक्ष में खड़े न हों. अगर देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने इस लक्ष्य में पूरी तरह कामयाब हुए हैं. आज कश्मीर से धारा-370 हट चुकी है और ज्यादातर मुस्लिम देश तटस्थ हैं.

साभार-  सत्याग्रह