जानिए, मुसलमान क्यों कर रहे हैं तीन तलाक़ बिल का विरोध?

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मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण बिल 2018 को कई मुस्लिम राजनेता अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बता रहे हैं. वहीँ इस बिल के लागू होने से बहुत कुछ बदलने की भी उम्मीद है.

नया साल 2019 भारत में मुस्लिम महिलाओं के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का सूचक बन सकता है. केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 संसद में पेश किया जो लोकसभा से पारित हो गया हैं और राज्यसभा में फिलहाल लंबित है. इसके बाद ट्रिपल तलाक देना संज्ञेय अपराध माना जाएगा, जिसमें गिरफ्तारी और तीन साल की सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है.

ये विधेयक मूलतः तीन तलाक पर लागू होगा. इसे कानून एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 17 दिसंबर को लोक सभा में पेश किया और ये 27 दिसंबर को यह पारित भी हो गया. अभी ये विधेयक राज्यसभा में है जहां पर विपक्ष इसको प्रवर समिति के पास भेजने के लिए कह रहा है. वहां से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए जाएगा और उसके बाद ये कानून बन जाएगा.

ये विधेयक तलाक ए बिद्दत (एक बार में तीन तलाक कहना) पर लागू होगा जिसमें इस तरह की तलाक अमान्य होगी, चाहे वो मौखिक, लिखित, व्हाट्सऐप या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक फार्म में दिया जाए.

इसमें पीड़ित महिला को कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे. इस विधेयक में ऐसे तलाक को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है. यानी कि पुलिस इसमें अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है. हालांकि ये संज्ञेय अपराध तभी माना जायेगा अगर इसकी सूचना पीड़ित महिला या उसके निकटतम रिश्तेदार जिनसे खून का रिश्ता हो या विवाह से जुड़ा हो वो पुलिस को दें.

वैसे इस बिल में मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को जमानत देने का अधिकार हैं लेकिन ये तभी होगा जब पीड़ित महिला की सुनवाई हो जाए और मजिस्ट्रेट संतुष्ट हो.

इस बिल में ये भी प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों के बीच समझौता भी करा सकता है. मजिस्ट्रेट द्वारा इसमें पीड़ित महिला और उस पर आश्रित बच्चों को गुजारा भत्ता भी निर्धारित कर सकता है. महिला को इसमें मजिस्ट्रेट की अनुमति से अपने नाबालिग बच्चो की कस्टडी भी मिल सकती हैं. इसमें सजा के रूप में तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है.

भारतीय जनता पार्टी ने ट्रिपल तलाक को मुद्दा बनाया हुआ है. उत्तर प्रदेश के पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा इसे जोर शोर से उठाती रही है. उसका मानना है कि कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा होगी.

विधेयक में भी उद्देश्य और कारण बताते हुए लिखा गया है कि उच्चतम न्यायलय द्वारा तलाक ए बिद्दत को खत्म करने के बाद और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आश्वासन के बाद भी देश से तलाक ए बिद्दत के मामले आ रहे थे. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को एक शायरा बानो के केस में बहुमत के फैसले 3:2 के आधार पर ट्रिपल तलाक को गलत करार दिया था.

भले भाजपा को इससे चुनावी रूप में वोटों का फायदा ना मिले लेकिन उसने विपक्ष को घेर दिया है. विपक्ष को लोक सभा में वाक आउट ही एक रास्ता दिखा. आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का संशोधन प्रस्ताव 2 के मुकाबले 241 जैसे भारी अंतर से गिर गया.

ओवैसी का कहना हैं, “ये सीधा सीधा मामला ये है कि वो मुसलमानों को जेल भेजने का अधिकार ले रहे हैं. किसी और धर्म के व्यक्ति अगर वो अपनी पत्नी को छोड़ते है तो कोई सजा नहीं हैं लेकिन मुसलमानों के लिए कानून बन रहा है. जब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि ट्रिपल तलाक से शादी खत्म नहीं हुई तो फिर सजा कैसी.”

वहीं आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अधिकारिक ट्वीट के अनुसार ट्रिपल तलाक बिल एक तानाशाही कृत्य है. ये आने वाले चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए किया गया हैं.

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विमेंस कॉलेज छात्र संघ की अध्यक्ष आफरीन फातिमा कहती हैं, “मैं एक मुस्लिम महिला हूं और मुझे अपने धर्म के बारे में पता है.

हमें इस समय एक ऐसे बिल की जरुरत है जो मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा दिला सके. कृपया हमारी आस्था हम पर छोड़ दीजिए और संविधान का दुरूपयोग बंद कीजिये. इस बिल के बाद तो पुरुष और फ्री हो जायेंगे और बिना तलाक के छोड़ देंगे. ये ऐसी प्रवृति को बढ़ावा देगा.”

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’