ट्रंप का गोरखधंधा

   

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का गोरखधंधा भी बड़ा मजेदार है। भारत सरकार द्वारा उनकी मध्यस्थता से इंकार के बावजूद वे मध्यस्थता किए जा रहे हैं। कभी वे नरेंद्र मोदी से बात करते हैं तो कभी इमरान खान से ! मध्यस्थता और क्या होती है ? उनकी मध्यस्थता कश्मीर से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है।

वे कश्मीर के बारे में तो किसी से कोई बात कर ही नहीं रहे हैं। न तो वे भारत से पूछ रहे हैं कि आपने धारा 370 और 35 ए क्यों खत्म की है और न ही वे पाकिस्तान से कब्जाए हुए कश्मीर को लौटाने की बात कर रहे हैं। उनकी तो बस एक ही टेक है। भई ! मोदी और इमरान, तुम हालात बिगड़ने मत देना ! लड़ मत पड़ना ! इमरान, तुम इतनी लफ्फाजी मत कर देना कि भारत अपना संयम खो दे।

इमरान का ट्विटर हेंडल करनेवाले किसी बाबू ने मोदी को फासिस्ट, तानाशाह और न जाने क्या-क्या कह डाला। किसी पाकिस्तानी मंत्री ने अपने परमाणु बम का हवाला भी दे दिया। इधर भारतीय रक्षा मंत्री ने परमाणु-संयम पर शाब्दिक-बल्लेबाजी कर दी। ट्रंप का यह भय निराधार नहीं है कि कश्मीर के खुलने पर हालात इतने न बदल जाएं कि दोनों देशों के बीच लड़ाई छिड़ जाए।

इमरान ने दूसरे बालाकोट की बात कई बार कह दी है। दोनों के बीच पारंपरिक युद्ध छिड़ जाए तो अमेरिका को कौनसा नुकसान है ? उसे तो फायदा ही फायदा है। दोनों मुल्क उससे हथियार खरीदेंगे और उसके कृपाकांक्षी बने रहेंगे। लेकिन ट्रंप की चिंता कुछ और ही है। वह है, अफगानिस्तान।

ट्रंप चाहते हैं कि राष्ट्रपति के अगले चुनाव में वे खम ठोक सकें कि देखों, मैं हूं कि जिसने अफगानिस्तान से अपनी फौजों की वापसी कर ली और हर माह करोड़ों डाॅलर वहां बर्बाद होने से बचा लिए। ट्रंप को पता है कि भारत-पाक युद्ध चाहे न छिड़े, सिर्फ तनाव ही बढ़ जाए, तो भी पाकिस्तान की जो फौजें अफगान-सीमांत पर लगी हैं, उन्हें वह भारतीय सीमांत पर डटाना चाहेगा। ऐसे में ट्रंप अपने मन की मुराद पूरी करने में काफी परेशान हो सकते हैं।

इसीलिए वे अपनी खाल मोटी करके भी मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। उधर इमरान खान को पता है कि वे कहीं भी जाएं, सुरक्षा परिषद या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन, कहीं भी उनकी दाल गलनेवाली नहीं है लेकिन पाकिस्तान की जनता के सामने उनकी हंडिया उबलती हुई दिखाई पड़ती रहनी चाहिए।

अपनी फौज को काबू में रखने के लिए उन्होंने अपने जनरल बाजवा को तीन साल तक और बने रहने का रसगुल्ला दे दिया है। इस भारत-पाक तनाव के कारण ट्रंप को अपनी छवि सुधारने का मौका भी मिल रहा है। कई राष्ट्रनेताओं के बारे में उटपटांग जुमले उछालनेवाले ट्रंप के मुंह से संयम और शांति की बातें काफी मजेदार लग रही हैं।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक