तीनों सेनापति तैयार

   

लोकसभा चुनाव 2019 के लिये दिल्ली से सात सीटों पर हुई जीत हार के विश्लेषण के बाद अलग अलग मायने निकाले जाते हैं क्योंकि दिल्ली देश का दिल और दर्पण माना जाता है। इसलिये दिल्ली में हो रहे चुनाव संग्राम पर पूरे देश तथा संसार की नजरें टिकी रहती हैं।

यह बात सत्य है कि प्रचार के तौर तरीकों पर धीरे धीरे लगाम लगाये जाने और धन खर्च करने की सीमा को सख्ती से लागू किये जाने से प्रचार परिदृश्य की तस्वीर ज्यादा रंगदार नहीं रही। अब न तो दीवारें बदरंग होती हैं और न ही आखिरी दिन तक और मतदान केन्द्र तक प्रचार की अनुमति है।

इन सभी पाबंदियों की शुरुआत तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी टी एन शेषन ने की थी। दिल्ली की बात करें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी को दिल्ली में अब नयी रेगुलर अध्यक्ष मिल गयी है जिनके साथ दिल्ली की जनता की भावनायें जुड़ी हैं और जिनका कामकाज लोगों को अब भी याद है।

राजधानी दिल्ली में भगवा पार्टी और दिल्ली की सबसे नयी पार्टी के तो पहले से ही नियमित अध्यक्ष हैं। नयी पार्टी के दिल्ली प्रमुख तो दिल्ली सरकार में मंत्री भी हैं। इस तरह तीनों दलों के प्रमुखों के चुनाव मैदान में आमने सामने आ कर डट जाने से प्रचार में जल्द ही तेजी आने की उम्मीद है। सबसे नयी पार्टी के पास अभी दिल्ली से निर्वाचित कोई लोकसभा सदस्य नहीं है तो उसे यहां से चुना हुआ सदस्य लोकसभा में भेज कर समूचे देश में अपनी धाक जमानी है तथा खुद को नेशनल पार्टी बनवाने की दिशा में आगे बढ़ना है।

उधर भगवा पार्टी को पिछले चार साल के अपने जीत के रिकार्ड पर नाज है और अपने पी एम के जादू पर भरोसा है, साथ ही तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली हार के कारण वांछित परिणाम नहीं मिलने की आशंका भी है। इसके अलावा सबसे पुरानी पार्टी का अभी दिल्ली विधानसभा में  कोई सदस्य और न ही दिल्ली से लोकसभा में कोई निवाचित सदस्य है, ऐसा लगता है कि इस दल को अपनी जमीन वापस पाने के लिये कड़ी मेहनत करनी होगी।

वैसे तो यह पार्टी हाल ही में तीन राज्यों में भगवा पार्टी से सत्ता छीन कर सरकार बनाने के कारण जोश में है। अब तक दिल्ली से लोकसभा चुनाव के नतीजे ज्यादातर एकतरफा रहते हैं। दिल्ली में अब तीन दल प्रासंगिक हैं और सेंटर में राज कर रही पार्टी को हराने के लिये नयी और पुरानी पार्टियों के बीच गठबंधन के जुमले सुनाई देते हैं। इन दोनों दलों की बयानबाजी से गठबंधन होने की कम गुंजाइश लगती है, अगर तालमेल नहीं होता तो किसे फायदा होगा, यह तो समय बतायेगा।