तीन तलाक़ बिल: जेडीयू और बीजेपी में भी होगा तलाक़!

,

   

भारत में आम चुनाव के बाद सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा तीन तलाक़ विधेयक फिर से पेश किए जाने की संभावना है।

इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान भी इस विधेयक का विरोध किया था।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, सोमवार से शुरू हो रहे भारतीय संसद के बजट सत्र में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा तीन तलाक़ विधेयक एक बार फिर से पेश किए जाने की संभावना है।

हालांकि, भाजपा के सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने शुक्रवार को तीन तलाक़ विधेयक का विरोध करते हुए कहा है कि बिना व्यापक परामर्श के मुसलमानों पर कोई भी विचार नहीं थोपा जाना चाहिए।

बता दें कि मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने ‘तीन की प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए बुधवार को नए विधेयक को मंज़ूरी दी थी। भारत के केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह जानकारी एक प्रेस वार्ता द्वारा दी थी।

समाचार चैनल एनडीटीवी के अनुसार, जदयू प्रवक्ता के.सी त्यागी ने एक बयान में कहा है कि, ‘जदयू समान नागरिक संहिता पर अपने पहले के रूख को दोहराता है।

उन्होंने कहा है कि, हमारा देश विभिन्न धर्मों के समूहों के लिए क़ानून और शासन के सिद्धांतों के संदर्भ में एक बहुत ही नाज़ुक संतुलन पर आधारित है।’ हालांकि, बयान में तीन तलाक़ विधेयक का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है।

लेकिन जदयू सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक समान नागरिक संहिता पर उनके रूख के केंद्र में है क्योंकि भाजपा मुसलमानों की तीन तलाक़ की प्रथा को अपराध की श्रेणी में डालने पर बल देती आई है।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, जदयू ने मांग की है कि क़ानून को अधिक व्यापक, समावेशी और स्वीकार्य बनाने के लिए सभी हितधारकों को अवश्य ही विश्वास में लिया जाए।

पार्टी ने 2017 में नीतीश कुमार द्वारा विधि आयोग को लिखे गए पत्र को भी संलग्न किया है, जिसमें उन्होंने इस मुद्दे पर आगे बढ़ने की कोई कोशिश करने से पहले चर्चा करने और व्यापक परामर्श करने की अपील की थी।

भारत के बिहार राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रथम कार्यकाल के दौरान इस विधेयक का विरोध किया था। पार्टी ने अपना रूख दोहराते हुए स्पष्ट किया है कि जदयू अपने रूख पर दृढ़ता से क़ायम है।

त्यागी ने कहा, ‘हमारा मानना है कि इस (समान नागरिक संहिता) पर विभिन्न धार्मिक समूहों के साथ अब भी काफ़ी गंभीरता से परामर्श करने की ज़रूरत है, इस तरह की प्रक्रिया के अभाव में विवाह, तलाक़, दत्तक अधिकार, विरासत और संपत्ति का उत्तराधिकार के जटिल मुद्दे से निपटने वाली लंबे समय से चली आ रही धार्मिक परंपरा से जल्दबाज़ी में छेड़छाड़ करने की स्पष्ट रूप से सलाह नहीं दी जा सकती।’

इस बीच तीन तलाक़ के सबंध में जदयू द्वारा दिए गए बयान को राजनीतिक टीकाकार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बीजेपी और जदयू के बीच मंत्री पद को लेकर शुरू हुए टकराव के रूप में भी देख रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि चुनाव से पहले नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का बीजेपी और मोदी के लिए जो रुख था, चुनाव के बाद उसमें दिन प्रतिदिन बदलाव आ रहा है और अगर इसी तरह यह टकराव की स्थिति बनी रही तो आने वाले दिनों में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में जदयू और बीजेपी के बीच तलाक़ की नौबत आ सकती है।

उल्लेखनीय है कि, मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान तीन तलाक़ विधेयक राज्यसभा में अटक गया था क्योंकि वहां उसके पास ज़रूरी संख्या वोट नहीं हैं।

उच्च सदन में इसे पारित कराने के लिए सरकार को ग़ैर-एनडीए दलों के समर्थन की भी ज़रूरत होगी। हालांकि, जदयू जैसे सहयोगी दलों के साथ-साथ विपक्ष द्वारा राज्य सभा में इसके समक्ष मुश्किलें खड़ी करने की फिर से संभावना बढ़ गई है।