तो क्या बिहार में लीची खाने से हो रही बच्चों की मौत ?

, ,

   

हार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से मरने वालों की तादात बढ़ती जा रही है. सात दिनों में इस बीमारी से 32 बच्चों की मौत जो चुकी है. जहां एक तरफ वैज्ञानिक इस बीमारी का तोड़ ढूढ़ने में लगे हुए हैं तो वहीं अब ग्रामीण इससे बचाव के लिए झाड़ फूंक का सहारा लेते नज़र आ रहे हैं. लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह है मुज़फ़्फ़रपुर की मशहूर लीची.

बताया जा रहा है कि लीची का मौसम आते ही इस इलाके में कोहराम मच जाता है,क्योंकि पेड़ो पर लीची के फल आते है तो घरो के चिराग बुझने लगते है. बीते पांच सालों में इस इलाके में साढ़े चार सौ से ज्यादा बच्चो की जान ले ली है. तो वहीं इस साल बीते सात दिनों में 32 बच्चों की मौत हो चुकी है.

उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल एसकेएमसीएच में इलाज के लिए अब तक 52 बच्चे भर्ती हुए है जिनमे से 18 बच्चो की मौत हो गई है. बच्चो के परिजन के मुताबिक सुबह बच्चे को तेज बुखार आता है और बच्चे की सांस टूटने लगती हैं. जहां एक तरफ लीची के पेड़ फलो से लदे हुए है तो वहीं अब गांव के खेत बच्चो के लिये शमशान बन रहे है.लोग इन्ही खेतों में बच्चों को दफन करते नज़र आ रहे हैं. जिन लीची के बागानों में बच्चे लीची तोडा करते थे आज वहीं बागान उनकी कब्र गाह बन गए हैं.

नेशनल हेल्थ पोर्टल के मुताबिक अप्रैल से जून के बीच मुज़फ्फरपुर के वे बच्चे एक्यूट इंसेफलाइटिस का शिकार हुए जो शारीरिक रूप से कमजोर थे और लीची के बागों में लगातार अक्सर जाते थे. आकड़ों के मुताबिक जानलेवा साबित हो रही इस बीमारी के 1978 में भारत में फैलने के बाद हाल में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी इसके मरीज़ पाए गए. इस जानलेवा संक्रमण से बिहार का उत्तरी इलाका और उत्तर प्रदेश का पूर्वी इलाका बुरी तरह चपेट में आ चुका है. बिहार में स्थानीय तौर पर इस संक्रमण को चमकी कहा जा रहा है. उप्र सरकार के आंकड़ों के हिसाब से 2017 में इस संक्रमण से 553 जानें गई थीं और 2018 में कम से कम 187 मौतें हुईं.